

परिचय
भारतीय रिज़र्व बैंक (बैंक) को विभिन्न विधियों के तहत, जिनमें बैंकिंग नियमन अधिनियम, 1949, भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934, संदाय और निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007, वित्तीय आस्तियों का प्रतिभूतिकरण और पुनर्गठन तथा प्रतिभूति हित का प्रवर्तन अधिनियम, 2002, फैक्टर विनियमन अधिनियम 2011, राष्ट्रीय आवास बैंक अधिनियम, 1987 एवं प्रत्यय विषयक जानकारी कंपनी (विनियमन) अधिनियम, 2005 शामिल हैं, विनियमित संस्थाओं पर दंड लगाने का अधिकार प्राप्त है।
अप्रैल 2017 में प्रवर्तन विभाग की स्थापना पर्यवेक्षण प्रक्रिया से प्रवर्तन कार्रवाई को अलग करने के लिए तथा विनियमित संस्थाओं द्वारा उपयुक्त विधियों तथा नियमों, विनियमों और आदेशों, जारी किए गए निर्देशों एवं उनके अंतर्गत लगाई गयी शर्तों (इसके बाद सामूहिक रूप से "कानून" के रूप में संदर्भित किया गया है) के उल्लंघन की पहचान करके उन पर कार्रवाई के लिए एक संरचित, नियम आधारित दृष्टिकोण स्थापित करने के उद्देश्य से की गई थी, जिसे बैंक में समान रूप से लागू किया जा सके।
प्रवर्तन कार्रवाई का उद्देश्य वित्तीय स्थिरता, जनहित और उपभोक्ता संरक्षण सुनिश्चित करने के व्यापक सिद्धांत के अंतर्गत विनियमित संस्थाओं द्वारा कानूनों का अनुपालन सुनिश्चित करना है। इस तरह की प्रवर्तन कार्रवाई शुरू करके अधिक अनुपालन प्राप्त करने का लक्ष्य है ताकि न केवल उन संस्थाओं को रोका जाए जिन्होंने कानूनों का उल्लंघन किया है बल्कि अन्य प्रतिभागियों पर भी प्रदर्शनकारी प्रभाव डाला जा सके ।
बैंक में प्रवर्तन प्रक्रिया एक समान होने के अलावा साक्ष्य आधारित, आनुपातिक और अपेक्षित होगी। प्रेस विज्ञप्तियों के माध्यम से प्रवर्तन कार्रवाई को सार्वजनिक किया जाएगा।
कानूनी ढांचा
पृष्ठ अंतिम बार अपडेट किया गया: नवंबर 23, 2022