मौद्रिक नीति 2010-11 की दूसरी तिमाही समीक्षा डॉ. डी. सुब्बाराव, गवर्नर द्वारा प्रेस वक्तव्य
2 नवंबर 2010 मौद्रिक नीति 2010-11 की दूसरी तिमाही समीक्षा आज सुबह रिज़र्व बैंक ने वर्ष 2010-11 के लिए मौद्रिक नीति की अपनी दूसरी तिमाही समीक्षा जारी की। इस नीति के मुख्य भाग में रिपो और प्रत्यावर्तनीय रिपो दर प्रत्येक में 25 आधार बिंदुओं की और बढ़ोतरी करना था। तदनुसार, रिपो दर बढ़ाकर 6.25 प्रतिशत और प्रत्यावर्तनीय रिपो दर बढ़ाकर 5.25 प्रतिशत की गई। आरक्षित नकदी निधि अनुपात (सीआरआर) को बैंकों की निवल माँग और मीयादी देयताओं (एनडीटीएल) के 6 प्रतिशत तक रखते हुए इसमें कोई परिवर्तन नहीं किया गया है। 2. चूँकि हमने मार्च 2010 में मौद्रिक नीति रुझान को प्रत्यावर्तित करना शुरू किया था, इस बढ़ोतरी के साथ रिपो दर में 150 आधार बिंदुओं तथा प्रत्यावर्तनीय रिपो में 200 आधार बिंदुओं तक की बढ़ोतरी हुई है। इस नीति कार्रवाई के पीछे के विचार 3. सर्वदा की तरह इस नीति कार्रवाई को समायोजित करने में हमने वैश्विक और घरेलू समष्टि आर्थिक स्थिति दोनों पर विचार किया है। खासकर तीन विचारों ने हमारा मार्गदर्शन किया है।
वैश्विक संभावना 4. वैश्विक अर्थव्यवस्था पर एक संक्षिप्त टिप्पणी से शुरुआत करता हूँ। सुधार की क्षणभंगुर और असमान प्रकृति तथा उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में भारी बेरोज़गारी वैश्विक सुधार की निरंतरता के बारे में चिंताएं खड़ी करती हैं। सुधार की कम होती हुई गति ने कुछ उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के केंद्रीय बैंकों को प्रोत्साहित किया है कि निजी माँग के अगले प्रोत्साहन के लिए परिमाणात्मक सरलता का दूसरा दौर शुरू (अथवा शुरू करने पर विचार) किया जाए। जबकि उन्नत अर्थव्यवस्थाओं की अत्यंत ढीली मौद्रिक नीति मध्यावधि में वैश्विक अर्थव्यवस्था को लाभ पहुँचा सकती है, अल्पावधि में इससे उभरती हुई बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं (इएमई) में और पूँजी अंतर्वाह की शुरुआत होगी तथा वैश्विक पण्य वस्तु कीमतों पर बढ़ोतरी का दबाव पड़ेगा। भारतीय अर्थव्यवस्था वृद्धि 5. घरेलू संभावना के अनुसार अर्थव्यवस्था मुख्यत: घरेलू कारकों द्वारा संचालित होते हुए वृद्धि दर प्रवृत्ति के निकट कार्य कर रही है। सामान्य दक्षिणी-पश्चिमी मानसून और इसके देरी से वापस होने से खरीफ और रबी दोनो कृषि उत्पादन की संभावनाओं को प्रोत्साहन मिला है जिसे ग्रामीण माँग में भी तेज़ी आएगी। अधिकांश औद्योगिक तथा सेवा क्षेत्र संकेतक भी निरंतर वृद्धि की ओर संकेत करते हैं। 6. कृषि क्षेत्र के अच्छे कार्यनिष्पादन तथा औद्योगिक उत्पादन और सेवा क्षेत्र गतिविधि के संकेतकों की एक श्रेणी पर विचार करते हुए नीति प्रयोजनों हेतु वर्ष 2010-11 के लिए वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि का आधारगत अनुमान 8.5 प्रतिशत रखा गया है। मुद्रास्फीति 7. अब मैं मुद्रास्फीति स्थितियों के मुख्य मुद्दे की बात करुंगा। हाल के महीनों में कुछ नरमी के होते हुए भी हेडलाइन मुद्रास्फीति उल्लेखनीय रूप से अपनी मध्यावधि प्रवृत्ति से अधिक और रिज़र्व बैंक के सहज क्षेत्र से काफी अधिक रही है। खाद्य मुद्रास्फीति ने मानसून के बाद प्रत्याशित सुधार नहीं दर्शाया है और एक वर्ष तक निरंतर बढ़े हुए स्तर पर रहकर अब कई पण्य वस्तुओं में अलग-अलग संरचनात्मक माँग-आपूर्ति असंतुलनों को दर्शा रहा है। इससे मुद्रास्फीति प्रत्याशाएं बढ़ गई हैं। अन्य पण्य वस्तुओं की कीमतों पर प्रभाव डालते हुए प्रत्याशाओं के जोखिम महत्त्वपूर्ण हो गए हैं जब अर्थव्यवस्था इस प्रवृत्ति के निकट बढ़ रही है। इससे संभावित रूप से हाल का सुधार असंतुलित हो सकता है। 8. हालांकि खाद्येतर विनिर्मित मुद्रास्फीति सुगम हुई है, वह अपनी मध्यावधि प्रवृत्ति से उच्चतर रही। सितंबर 2010 में जारी नई थोक मूल्य सूचकांक श्रृंखला ने अद्यतन आधार (2004-05=100) और पण्यों के व्यापक विस्तार के साथ पण्य मूल्य स्तरों का एक बेहतर प्रतिनिधित्व किया है। जब हम पुरानी और नई थोक मूल्य सूचकांक श्रृंखला की तुलना करते हैं तब मध्यावधि के दौरान मुद्रास्फीति का समग्र स्तर दोनों श्रृंखलाओं में एक समान होता है किन्तु गैर-समग्र स्तर पर उनमें अंतर है। नई श्रृंखला में प्राथमिक वस्तुएं खासकर खाद्य वस्तुओं की मुद्रास्फीति पुरानी श्रृंखला से उल्लेखनीय रूप से उच्चतर रही है जबकि विनिर्मित उत्पादों में वह कुछ निम्नतर रही। 9. आगे चलकर मुद्रास्फीति संभावना को तीन घटकों से आकार मिलेगाः (i) खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति का बढ़ना, (ii) वैश्विक पण्य मूल्यों; और (iii) कई उद्योगों में क्षमता बाध्यताओं में कड़ाई के कारण जारी वृद्धि से उभरे माँग दबाव। 10. अंत में, मुद्रास्फीति के मौजूदा बढ़े हुए स्तर का सामान्य होने की संभावना है जो आंशिक रूप से आपूर्ति की कमी के कुछ हद तक सुगम होने और नपी-तुली नीति कार्रवाई से दिखाई देती है। रिज़र्व बैंक ने अपनी जुलाई महीने की समीक्षा में थोक मूल्य सूचकांक की पुरानी श्रृंखला के अंतर्गत मार्च 2011 के लिए 6 प्रतिशत का थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति का आधार स्तर का अनुमान किया था। मार्च 2010 के लिए थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति का आधार स्तर अनुमान नई श्रृंखला के अंतर्गत 5.5 प्रतिशत पर रखा गया है। यह पुरानी श्रृंखला के अंतर्गत 6 प्रतिशत के समरूप है। प्रभावी रूप से इसका अर्थ यह है कि रिज़र्व बैंक का मुद्रास्फीति का अनुमान अपनी जुलाई 2010 की समीक्षा के अनुरूप अपरिवर्तित रहा है। मौद्रिक और चलनिधि समग्र 11. समग्र चलनिधि परिस्थिति पिछले कुछ हफ्तों से चर्चा में रही है। मैं उभरती परिस्थिति और उससे संबंधित गतिविधियों को स्पष्ट करना चाहूँगा। 12. मौजूदा सख्त चलनिधि ढाँचागत और अस्थायी कारकों का परिणाम है। ढाँचागत की ओर देखें तो बैंकिंग प्रणाली की जमा वृद्धि दर ऋण वृद्धि में सुधार होने के बावजूद मंद रही है। अस्थायी की ओर देखें तो अनुमान से अधिक कर प्राप्तियों के फलस्वरूप सरकारी नकद शेष में वृद्धि हुई। इसके अलावा, कोल इण्डिया प्रारंभिक सार्वजनिक प्रस्ताव (आइपीओ) के भारी अभिदान की धन-वापसी के कारण व्यापक पूँजी बर्हिवाह हुआ। 13. सख्त चलनिधि परिस्थितियाँ मुद्रास्फीति प्रबंधन के नज़रिए से अत्यंत वांछनीय है किंतु घाटे के बारे में ठोस चिंताएं है क्योंकि चलनिधि समायोजन सुविधा के माध्यम से निक्षेप हाल के हफ्तों में बहुत ज्यादा हो गया था जोकि निवल माँग और मियादी देयताओं के (+/-) 1 प्रतिशत के रिज़र्व बैंक की सुगम स्थिति से अधिक है। 14. अस्थायी चलनिधि दबाव से बचने के लिए रिज़र्व बैंक ने दैनिक आधार पर द्वितीय चलनिधि समायोजन सुविधा (एसएलएएफ) आयोजित करने का निर्णय लिया और बैंकों को 4 नवंबर 2010 तक अपनी निवल माँग और मीयादी देयताओं के 1 प्रतिशत तक चलनिधि समायोजन सुविधा के अंतर्गत अतिरिक्त चलनिधि सहायता प्राप्त करने की अनुमति भी दी। ढाँचागत चलनिधि समस्या को संबोधित करने के लिए आज सुबह रिज़र्व बैंक ने 12,000 करोड़ रुपये की सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद के लिए खुले बाज़ार परिचालन की घोषणा की। 15. विकास-मुद्रास्फीति गतिविधियों के मौजूदा मूल्यांकन को देखते हुए यह आशा है कि मौद्रिक समग्र हमारी जुलाई समीक्षा में दर्शायी गई अनुमानित सीमा के अनुरूप बढ़ेगा। तदनुसार, नीति प्रयोजनों के लिए हमने 17 प्रतिशत पर मुद्रा आपूर्ति (एम3) और 20 प्रतिशत पर खाद्येतर बैंक ऋण वृद्धि के पूर्व के अनुमानों को बनाए रखा है। हमेंशा की तरह उक्त आँकड़े संकेतात्मक अनुमान हैं और लक्ष्य नहीं है। बाह्य क्षेत्र 16. अब मैं बाह्य क्षेत्र प्रबंधन के संबंध में बात करना चाहूँगा जो कि वैश्विक गतिविधियों के चलते हाल ही में काफी महत्वपूर्ण हो गया है। 2010-11 की प्रथम तिमाही में भुगतान संतुलन में चालू खाते के घाटे में बढ़ोतरी हुई है। यदि मौजूद प्रवृत्ति जारी रहती है तो पूर्ण वर्ष के लिए जीडीपी के प्रतिशत के रूप में चालू खाता घाटा पिछले वर्ष की तुलना में महत्वपूर्ण रूप से उच्चतर रहेगा। सामान्यतया यह माना जाता है कि, जीडीपी के 3 प्रतिशत से अधिक चालू खाता घाटा मध्यावधि के दौरान बरकरार रख पाना कठिन होता है। मध्यावधि कार्य पर सरकार एवं रिज़र्व बैंक दोनो का नीतिगत ध्यान रहता है। अल्पावधिक कार्य इस बात को सुनिश्चित करता है कि चालू खाते का पूरी तरह से वित्तपोषण हो और साथ ही साथ यह भी सुनिश्चित करता है कि पूँजीगत प्रवाह अर्थव्यवस्था की अवशोषण क्षमता से बहुत दूर न हो और समग्र पूँजीगत प्रवाह में दीर्घावधि और स्थायी प्रवाहों का घटक उच्च रहे। पूँजीगत प्रवाह 17. आज की पॉलिसी दरों में हुई वृद्धि के संबंध में, मैं एक और महत्वपूर्ण मुद्दे पर बात करना चाहूंगा। इस बात पर हमेशा चर्चा की जाती रही है कि घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों के बीच ब्याज दर अन्तर के बढ़ने के फलस्वरूप ऋण-सृजन करने वाले पूँजीगत प्रवाहों में वृद्धि होगी। जबकि, यह सच है कि बड़े ब्याज दर अंतर घरेलू ऋण लिखतों और घरेलू कंपनियों द्वारा बाह्य उधार में निवेश को और अधिक आकर्षक बना देते हैं, हमें भारतीय परिप्रेक्ष्य में तीन पक्षों को ध्यान में रखना पड़ेगा। पहला, अर्थव्यवस्था की पूँजीगत प्रवाह को अवशोषित करने की क्षमता बढ़ी है जोकि, चालू खाते के घाटे के बढ़ने में परिलक्षित होता है। दूसरा, घरेलू और अतंरराष्ट्रीय ब्याज दरों के बीच पहले से ही काफी अंतर होने के बावजूद हाल ही में पूँजीगत प्रवाह इक्विटी मार्केट में प्रमुख रूप से पोर्टफोलियो प्रवाहों के रुप मे रही है। यह इस बात की ओर इशारा करता है कि ब्याज दर में अंतर ही एकमात्र ऐसा कारक नहीं है जो पूँजीगत प्रवाहों की प्रभावित करती है। तीसरा, ऋणृ-सृजन करने वाले प्रवाहों की तुलना में इक्विटी को तरजीह देने की हमारी नीति के अनुसार हम ऋण प्रवाहों के संबंध में अभी भी कुछ नियंत्रण रखते हैं। जोखिम कारक 18. मैं वृद्धि और मुद्रास्फीति परिदृश्य के संबंध में कुछ महत्वपूर्ण जोखिमों की ओर इशारा करना चाहूँगा।
मौद्रिक नीति रुझान 19. मौद्रिक नीति के वर्तमान रुझान का उद्देश्य है:
अपेक्षित परिणाम 20. आज की मौद्रिक नीति कार्रवाई से अपेक्षित है
21. मैं दुहराता हूं कि अक्तूबर 2009 से विस्तारकारी मौद्रिक नीति से दूर होने का प्रयास निरंतर बनी हुई व्यापक वैश्विक अनिश्चितता के परिप्रेक्ष्य में भारत के विशिष्ट विकास मुद्रास्फीति की गति के आधार पर समायोजित किया गया है। रिज़र्व बैंक वैश्विक और देशी समष्टि आर्थिक स्थितियों पर बारीकी से निगरानी रखना जारी रखेगा। मूल्य और उत्पादन स्थिरता के मोटे उद्देश्यों के अनुरूप हम भारीभरकम और अस्थिर पूंजी प्रवाह और देशी चलनिधि स्थितियों में तेज घट-बढ़ के संभाव्य अवरोधात्मक प्रभावों को कम करने के लिए आवश्यकतानुसार कार्रवाई करेंगे। 22. रिज़र्व बैंक को पूर्णतः वर्तमान वृद्धि और मुद्रास्फीति प्रवृत्तियों के आधार पर विश्वास है कि निकट भविष्य में और अधिक दर कार्रवाई किए जाने की संभावना सापेक्षतः कम है। तथापि, अनिश्चित विश्व में हमें या तो वैश्विक या देशी परिवेश से निर्माण होनेवाले आघातों का यथोचित रूप से सामना करने के लिए तैयार रहने की आवश्यकता है। विकासात्मक और विनियामक नीतियां 23. अब मैं विकासात्मक और विनियामक मुद्दों पर आता हूं। हाल ही के वर्षों में रिज़र्व बैंक द्वारा विनियमन का बल केवल वित्तीय प्रणाली को मजबूत करने पर नहीं बल्कि वित्तीय बाजारों का विकास करने, वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने, ऋण वितरण विशेषतः लघु और मध्यम उद्यम क्षेत्र को दिए जानेवाले, में सुधार लाने, ग्राहक सेवा में सुधार लाने और भुगतान और निपटान प्रणालियों को मजबूत करने पर भी दिया जा रहा है। अतः रिज़र्व बैंक इन क्षेत्रों में सुधारों का अनुसरण करना जारी रखेगा ताकि वित्तीय प्रणाली की दक्षता और स्थिरता बढ़ाई जा सके । 24. मैं ऐसे कुछ उपायों पर प्रकाश डालूंगा जो हमने इन क्षेत्रों में किए हैं अथवा करने की योजना बनाई है। वित्तीय स्थिरता
ब्याज दर
वित्तीय बाजार उत्पाद
ऋण वितरण और वित्तीय समावेशन
विनियामक उपाय
संस्थागत उपाय
बैंकों के साथ चर्चा 25. बैंकों ने रिज़र्व बैंक के नीति रुझान का स्वागत किया। वे इस बात से सहमत हुए कि आज रिज़र्व बैंक द्वारा घोषित मौद्रिक उपाय वर्तमान आंतरिक विकास मुद्रास्फीति की गति में उचित हैं। मौद्रिक उपायों के साथ-साथ बैंकों के साथ चर्चा चार विशिष्ट मुद्दों पर केंद्रित थी; यथा (i) चलनिधि स्थिति; (ii) आवास ऋण, मूल्य और जोखिम; (iii) ग्राहक सेवा; और (iv) बाह्य क्षेत्र प्रबंधन। हाल ही के घोषित चलनिधि सुगमता उपायों की सराहना करते हुए बैंकों ने उल्लेख किया कि ये उपाय ढाँचागत चलनिधि को सुगम बनाने के लिए आवश्यक हैं। आवास ऋणों में ऋण मूल्य अनुपात तथा बढ़े हुए जोखिम भार के निर्धारण का स्वागत करते हुए कुछ बैंकों ने महसूस किया कि आवास ऋणों की आरंभिक अवधि में न्यूनतर ब्याज दरें प्रदान करने की प्रक्रिया को टीज़र ऋण के साथ जोड़ा नहीं जा सकता क्योंकि इन ऋणों में जोखिम अस्थाई दर पर ऋणों से भिन्न नहीं है। बैंकों ने यह दोहराया कि वे सुधारयुक्त ग्राहक सेवा की ओर प्रयत्नशील रहेंगे। बैंक, रिज़र्व बैंक की इस चिंता से भी सहमत हुए कि समग्र प्रवाह में स्थिर पूँजी प्रवाह के घटक को बढ़ाया जाना चाहिए ताकि बढ़ते हुए चालू खाते के घाटे के वित्तपोषण की चिंता को कम किया जा सके। आर.आर.सिन्हा |
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