भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला सं. 5: नैसर्गिक ब्याज दर: अनिश्चितता की स्थिति में भारत की मौद्रिक नीति के रुख का आकलन
14 अक्टूबर 2015 भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला सं. 5: नैसर्गिक ब्याज दर: भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपनी वेबसाइट पर भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला* के अंतर्गत नैसर्गिक ब्याज दरः अनिश्चितता की स्थिति में भारत की मौद्रिक नीति के रुख का आकलन शीर्षक से एक वर्किंग पेपर उपलब्ध कराया है। यह पेपर हरेन्द्र कुमार बेहरा, सितिकांत पट्टनायक और राजेश कावेडिया द्वारा लिखा गया है। मौद्रिक नीति कार्रवाई के अंतर्गत प्रायः कालांतर में उभरती नैसर्गिक ब्याज दर को लेकर रहने वाली अनिश्चितताओं से निपटने के लिए संघर्ष करना पड़ता। निर्धारित अंतिम लक्ष्यों की तुलना में मौद्रिक नीति रुख की उपयुक्तता का आकलन सामान्यतः सांकेतिक नीति ब्याज दर की टेलर टाइप रूल निर्देशित ब्याज दर पथ से तुलना करके किया जाता है। तथापि, इसमें अंतर्निहित नैसर्गिक ब्याज दर को स्थिरांक के रूप मे माना जाता है। यह पेपर एक सैद्धांतिक ढांचे का प्रयोग करता है जो रैमसे के वृद्धि मॉडल और नई कीनसिएन समष्टि-गतिकी के सार और कालमैन फिल्टर अनुमान तकनीकी की एप्लिकेशन को संयुक्त करता है। पेपर में निष्कर्ष है कि वर्ष 2014-15 की चौथी तिमाही में भारत की नैसर्गिक वास्तविक ब्याज दर 0.6 प्रतिशत से 3.1 प्रतिशत के दायरे में रही, हालांकि मुख्य अनुमान 1.6 प्रतिशत से 1.8 प्रतिशत के संकुचित दायरे की तरफ संकेत करते हैं। नैसर्गिक दर की उत्पत्ति मुख्य रूप से संचरनात्मक निर्धारक तत्वों जैसे उत्पादकता, जनसंख्या वृद्धि और बचत दर (या परिवारों की समय अधिमानता) से निर्धारित होती है। तथापि, कालांतर में अनुभवजन्य साहित्य अन्य निर्धारक तत्वों की भूमिका की ओर संकेत करता है जिसमें राजकोषीय/ वित्तीय/संरचनागत/संस्थागत सुधार शामिल हैं। अंतर्निहित निर्धारक तत्वों के बदलने पर नैसर्गिक दर में बदलाव हो सकता है। सभी संभावित निर्धारक तत्वों के बीच कुछ तत्व अधिक स्थायी और अन्य क्षणिक हो सकते हैं तथा सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कुछ कारक जो वास्तविक दरों को नैसर्गिक दरों से दूर करते हैं, को गलती से निर्धारक तत्वों के रूप में मान लिया जाता है। इसलिए, अत्यधिक अनिश्चितता के बीच नैसर्गिक दर के यथार्थवादी आकलन को मौद्रिक नीति के लिए प्रमुख चुनौती के रूप में माना जाता रहेगा। पेपर के अन्य प्रमुख निष्कर्ष इस प्रकार हैं:
*रिज़र्व बैंक ने आरबीआई वर्किंग पेपर श्रृंखला की शुरुआत मार्च 2011 में की थी। ये पेपर रिज़र्व बैंक के स्टाफ सदस्यों की प्रगति में अनुसंधान प्रस्तुत करते हैं और अभिमत प्राप्त करने और चर्चा के लिए इन्हें प्रसारित किया जाता है। इन पेपरों में व्यक्त विचार लेखकों के होते हैं, भारतीय रिज़र्व बैंक के नहीं होते हैं। अभिमत और टिप्पणियां कृपया लेखकों को भेजी जाएं। इन पेपरों के उद्धरण और उपयोग में इनके अनंतिम स्वरूप का ध्यान रखा जाए। संगीता दास प्रेस प्रकाशनी : 2015-2016/902 |
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