भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला 15/2012 - भारत में सरकारी ऋण प्रबंध और मौद्रिक नीति : ब्याज तर्क के विवाद की एक अनुभवजन्य जांच
26 जुलाई 2012 भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला 15/2012 भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपनी वेबसाईट पर '' भारत में सरकारी ऋण प्रबंध और मौद्रिक नीति : ब्याज तर्क के विवाद की एक अनुभवजन्य जांच'' शीर्षक वर्किंग पेपर जारी किया। यह पेपर श्री सुनिल कुमार और श्री एन.आर.वी.वी.एम.के.राजेन्द्र कुमार द्वारा लिखित है। भारतीय रिज़र्व बैंक से सरकारी ऋण प्रबंध (एसडीएम) को अलग करने का प्रस्ताव ब्याज तर्क के विवाद के आधार पर किया गया है। इस तर्क का मुख्य दबाव यह है कि सरकार के बाज़ार उधार कार्यक्रम के लिए लागत को न्यूनतम करने से रिज़र्व बैंक ब्याज दरों में वृद्धि से घबड़ाता है और इस प्रक्रिया में इसे मूल्य स्थिरता के अपने मुख्य अधिदेश से समझौता करना पड़ सकता है। उपर्युक्त पृष्ठभूमि में यह पेपर अनुभवजन्य रूप से भारत के मामले में इस तर्क की प्रयोज्यता का सत्यापन करने का प्रयत्न करता है। यह पेपर यह आकलन करता है कि परिवर्धित मौद्रिक नीति प्रतिक्रिया मासिक आंकड़ों के साथ आकलन के परिणामों को संपुष्ट करने के लिए अप्रैल 2004 से दिसंबर 2011 और तब वर्ष 2000 : पहली तिमाही से वर्ष 2011 : चौथी तिमाही तक के तिमाही आंकड़ें लेते हुए एक वीएआर ढांचे में कार्य करती है। यह पाया गया है कि सरकारी बाज़ार उधार का वह स्तर नीति संचालित लक्ष्य दर के अनुमान चूक अंतर के महत्वपूर्ण अंश का सांख्यिकीय रूप से वर्णन नहीं करता है। इसके अलावा आघात प्रतिक्रिया कार्य (आईआरएफ) के परिणाम यह दर्शाते हैं कि सरकारी बाज़ार उधार में एक मानक विचलन (एसडी) नवोन्मेषीकरण के प्रति नीति संचालित लक्ष्य दर की प्रतिक्रिया सांख्यिकी रूप से महत्वहीन बनी रहती है। इसके अतिरिक्त वीएआर ग्रेंगर कारणत्व परिणाम यह दर्शाता है कि सरकारी बाज़ार उधार नीति परिचालन दर का ग्रैंगर कारण नहीं बनता है। अत: वीएआर में सभी जांच परिणाम यह दर्शाते हैं कि सरकारी बाज़ार उधार के प्रति नीति संचालित लक्ष्य दर की प्रतिक्रिया सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण नहीं है और इस प्रकार यह निष्कर्ष निकलता है कि सरकारी बाज़ार उधार की मात्रा/आकार भारतीय रिज़र्व बैंक के नीति दर निर्णयों को प्रभावित नहीं कर रहे हैं। अत: यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि ऊपर निर्दिष्ट ब्याज तर्क के विवाद भारतीय संदर्भ में प्रयोज्य नहीं है। उपर्युक्त पृष्ठभूमि में एसडीएम को रिज़र्व बैंक से अलग होकर किसी सार्वजनिक ऋण प्रबंध एजेंसी में जाना जिसकी प्रक्रिया पहले से जारी है, अन्य नीति अनिवार्यताओं, यदि हों के द्वारा उचित हो सकती है लेकिन ब्याज तर्क के विवाद द्वारा नहीं। भारतीय रिज़र्व बैंक ने मार्च 2011 में भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखलाएं लागू की थी। ये पेपर भारतीय रिज़र्व बैंक के स्टाफ सदस्यों की प्रगति में अनुसंधान का प्रतिनिधित्व करते हैं तथा इन्हें स्पष्ट अभिमत और आगे चर्चा के लिए प्रसारित किया जाता है। इन पेपर में व्यक्त विचार लेखकों के हैं, भारतीय रिज़र्व बैंक के नहीं। अभिमत और टिप्पणियों लेखकों को भेजी जाएं। इन पेपरों के उद्धरण और उपयोग इसके अनंतिम स्वरूप को ध्यान में रखकर किए जाएं। अजीत प्रसाद प्रेस प्रकाशनी : 2012-2013/141 |
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