भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्रवाह पर भारतीय रिज़र्व बैंक का अध्ययन
11 अप्रैल 2012 भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्रवाह पर वैश्विक स्तर पर तथा कई क्षेत्रों /देशों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में हाल की प्रवृतियों पर किया गया विश्लेषण यह सुझाव देता है कि भारत द्वारा सावधानी पूर्वक की गयी पूँजी खाता उदारीकरण प्रक्रिया के कारण अपने मज़बूत घरेलू आर्थिक कार्य-निष्पादन और एफडीआइ नीति के धीमे-धीमे उदारीकरण ने सामान्यत: उच्च एफडीआइ प्रवाह को आकर्षित किया है। हाल के वैश्विक संकट के दौरान भी भारत में एफडीआइ अंतवार्ह में उतनी कमी नहीं दिखाई दी, जितनी की विश्व स्तर पर तथा अन्य उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में दिखाई दी। फिर भी, जब 2010-11 के दौरान उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में वैश्विक एफडीआइ प्रवाहों में सुधार हुआ, वैश्विक सुधार के पहले संबंधित बेहतर घरेलू आर्थिक कार्य-निष्पादन के बावजूद भारत में एफडीआइ प्रवाह में कमी बनी रही। इससे खासकर, 3 प्रतिशत से ऊपर के सहनीय स्तर से अधिक चालू खाता घाटा बढ़ने की पृष्टभूमि में यह प्रश्न उठता है। कॉफमन के सूचकांक का प्रयोग करते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक ने ऐसी कमी के पीछे के कारकों का विश्लेषण करने के लिए एक प्रयोगिक अध्ययन आयोजित किया। आर्थिक घट-बढ़ की मज़बूती के बावजूद भारत में एफडीआइ अंतवार्ह में कमी नीति अनिश्चितता जैसे संस्थागत कारकों के कारण हो रही है। प्रमुख 10 उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं के लिए एक पैनल ने यह दर्शाया है कि एफडीआइ पर खुलेपन, विकास की संभावना, समाष्टि रूप से आर्थिक सहनीयता, मज़दूरी लागत और सरकार की नीति में अनिश्चितता का उल्लेखनीय प्रभाव पड़ा है । भारत में वास्तविक एफडीआइ प्रवाह की तुलना अर्थात अंतर्निहित समाष्टि रूप से आर्थिक मूल सिद्धांत पर आधारित संभाव्य स्तर की गणना यह दर्शाते हैं कि वास्तविक एफडीआइ जो सामान्यत: वर्ष 2009-10 तक संभाव्य स्तर को खोज निकालती थी वह वर्ष 2010-11 के दौरान अपनी क्षमता से कम रही। साथ ही, प्रतिकूल वास्तविक परिदृश्य ने आर्थिक और गैर-आर्थिक कारकों को अलग-अलग करने के प्रयास यह सुझाव देते है कि 2010-11 के दौरान वास्तविक और संभाव्य के बीच भिन्नता शायद आंशिक रूप से नीति अनिश्चितता के कारण हुई है। अजीत प्रसाद प्रेस प्रकाशनी : 2011-2012/1624 |
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