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बाह्य वाणिज्यिक उधार (ईसीबी) नीति- सुनियोजित दायित्व (Structured Obligation)

भारिबैंक/2012-13/553
ए.पी.(डीआईआर सीरीज) परिपत्र सं.120

26 जून 2013

सभी प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-। बैंक

महोदया/महोदय

बाह्य वाणिज्यिक उधार (ईसीबी) नीति- सुनियोजित दायित्व (Structured Obligation)

प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-। बैंकों का ध्यान बाह्य वाणिज्यिक उधार (ईसीबी) नीति (सुनियोजित दायित्व) से संबंधित 2 मार्च 2010 के ए.पी.(डीआईआर सीरीज) परिपत्र सं.40 और 26 सितंबर 2011 के ए.पी.(डीआईआर सीरीज) परिपत्र सं.28 की ओर आकृष्ट किया जाता है।

2. मौजूदा दिशानिर्देशों के अनुसार, केवल संरचना क्षेत्र (मौजूदा बाह्य वाणिज्यिक उधार (ईसीबी) नीति के तहत यथा परिभाषित) के विकास में संलग्न भारतीय कंपनियों और रिज़र्व बैंक द्वारा इंफ्रास्ट्रक्चर वित्त कंपनियों (आइएफसी) के रूप में वर्गीकृत कंपनियों द्वारा रुपये में मूल्यवर्गीकृत बांडों तथा डिबेंचरों जैसे पूँजी बाजार-लिखतों के निर्गम के जरिये लिए गये घरेलू ऋण/ऋणों का बहुद्देशीय/क्षेत्रीय वित्तीय संस्थाओं, सरकारी स्वामित्व वाली विकास वित्तीय संस्थाओं, प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष विदेशी ईक्विटी धारक (धारकों) द्वारा, स्वचालित मार्ग के तहत, ऋणों में उच्चीकरण (enhancement) किये जाने की अनुमति है।

3. समीक्षा करने पर, यह निर्णय लिया गया है कि स्वचालित मार्ग के तहत बाह्य वाणिज्यिक उधार लेने के लिए पात्र सभी उधारकर्ताओं द्वारा भारतीय रुपये में बांडों /डिबेंचरों के निर्गम के जरिये लिए गये घरेलू ऋण/ऋणों का पात्र अनिवासी संस्थाओं द्वारा ऋण- उच्चीकरण किया जा सकता है। यह भी निर्णय लिया गया है कि अंतर्निहित ऋण लिखतों की न्यूनतम औसत परिपक्वता अवधि सात वर्ष से घटाकर तीन वर्ष कर दी जाए। तथापि, ऐसे पूँजी बाजार लिखतों के लिए तीन वर्षों की न्यूनतम औसत परिपक्वता अवधि तक पूर्वभुगतान और क्रय-विक्रय विकल्प (call/put options) का प्रयोग करने की अनुमति नहीं होगी। 2 मार्च 2010 के ए.पी.(डीआईआर सीरीज) परिपत्र सं.40 के पैरा 4 (iv), (vi) से (viii) में उल्लिखित सभी अन्य शर्तें अपरिवर्तित बनी रहेंगी।

4. ऐसे ऋण उच्चीकरण के चुकता करने की दशा में, यदि गारंटीकर्ता, देयता चुकाता है और यदि पात्र अनिवासी संस्था को उक्त राशि विदेशी मुद्रा में चुकाने की अनुमति होती है, तो व्यापार ऋण/बाह्य वाणिज्यिक उधारों की संबंधित परिपक्वता अवधि के संबंध में लागू समग्र लागत सीमा आहूत-ऋण पर लागू होगी।

5. संशोधित नीति तत्काल प्रभाव से लागू होगी तथा वह इस संबंध में प्राप्त अनुभव के आधार पर पुनरीक्षा के अधीन है।

6. प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंक इस परिपत्र की विषयवस्तु से अपने ग्राहकों और घटकों को अवगत कराने का कष्ट करें।

7. विदेशी मुद्रा प्रबंध (गारंटी) विनियमावली, 2000 (3 मई 2000 की अधिसूचना सं. फेमा सं. 8/2000-आरबी) में आवश्यक संशोधन 19 मार्च 2013 की अधिसूचना सं. फेमा सं. 269/2013-आरबी के जरिये जारी किए गए हैं, जिन्हें 23 मई 2013 के जी.एस.आर.सं. 329 (ई) के जरिये अधिसूचित किया गया है।

8. इस परिपत्र में समाहित निर्देश विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 (1999 का 42) की धारा 10 (4) और 11(1) के अंतर्गत और किसी अन्य विधि के अंतर्गत अपेक्षित किसी अनुमति/अनुमोदन पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना जारी किए गए हैं।

भवदीय

(रुद्र नारायण कर)
प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक

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