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24 जुलाई 2006 को प्रकाशित
समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियां पहली तिमाही समीक्षा - 2006-07
24 जुलाई 2006
समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियां पहली तिमाही समीक्षा - 2006-07
भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज 2006-07 की मौद्रिक नीति के संबंध में वार्षिक वक्तव्य की पहली तिमाही समीक्षा के बैकड्रॉप के रूप में "समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियां : पहली तिमाही समीक्षा - 2006-07" दस्तावेज जारी किया।
वर्ष 2006-07 के दौरान अब तक की समष्टि आर्थिक और मौद्रिक गतिविधियों की मुख्य-मुख्य बातें निम्नानुसार हैं:
वास्तविक अर्थव्यवस्था
- 1 जून से 12 जुलाई 2006 के दौरान रिकार्ड की गयी संचित वर्षा एक वर्ष पहले के सामान्य से एक प्रतिशत अधिक की तुलना में सामान्य से 10 प्रतिशत कम रही।
- औद्योगिक उत्पादन अप्रैल से मई 2006 के दौरान अपनी गति बनाए रहा और इसने 9.8 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की। विनिर्माण क्षेत्र अपनी द्विअंकीय वृद्धि(10.9प्रतिशत)के साथ लगातार औद्योगिक गतिविधि का मुख्य संचालक बना रहा और इसने औद्योगिक वृद्धि के लगभग 92.5 प्रतिशत हिस्से का योगदान किया।
- बुनियादी संरचना क्षेत्र ने अप्रैल-मई 2006 के दौरान 5.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की जबकि अप्रैल-मई 2005 के दौरान यही वृद्धि 7.1 प्रतिशत थी।
- विनिर्माण और सेवा क्षेत्र गतिविधियों में उछाल और सकारात्मक कारोबारी विश्वास और प्रत्याशाएं बताती हैं कि 2006-07 में भारतीय अर्थव्यवस्था में हाल ही की वृद्धि की गति बनी रहने की संभावना है जैसा कि विभिन्न एजेंसियों द्वारा भी अनुमान लगाया गया है।
राजकोषीय स्थिति
- बजट अनुमानों के अनुपात के रूप में अप्रैल-मई 2006 के दौरान केंद्र सरकार के सभी मुख्य घाटा संकेतक एक वर्ष पहले के अपने स्तर से उंचे रहे। अप्रैल-मई 2006 के दौरान राजस्व प्राप्तियां बजट अनुमानों के अनुपात के रूप में 2005 की तत्संबंधित अवधि की तुलना में अधिक रहीं। तथापि, ब्याज भुगतानों, सब्सिडी, राज्यों को अनुदान तथा केंद्रीय सड़क निधि और राष्ट्रीय ग्रामीण नियोजन गारंटी निधि के लिए निधियों को लोक लेखा में अंतरण को पहले से हिसाब में लेने(फ्रंट लोडिंग)के भी चलते भी अप्रैल-मई 2006 के दौरान सकल व्यय अधिक रहा।
- वर्ष 2006-07 के दौरान (18 जुलाई 2006 तक) केंद्र द्वारा जुटाए गये सकल और निवल बाजार उधार (दिनांकित प्रतिभूतियों और 364-दिवसीय खजाना बिलों सहित) बजट अनुमानों के 38.2 प्रतिशत और 30.4 प्रतिशत रहे जबकि ये एक वर्ष पहले क्रमश: 37.2 प्रतिशत और 39.1 प्रतिशत थे।
- वर्ष 2006-07 के दौरान अब तक (18 जुलाई 2006 तक) राज्यों ने बाजार से 7343 करोड़ रुपये (वर्ष के सकल आबंटन का 30.1 प्रतिशत) जुटाए हैं।
- राज्यों द्वारा अप्रैल-जून2006 के दौरान अर्थोपाय अग्रिम और ओवरड्राफ्ट का साप्ताहिक औसत उपभोग (316 करोड़ रुपये) पिछले वर्ष की तदनुरूप अवधि की तुलना में (1449 करोड रुपये) काफी कम था। अप्रैल-जून 2006 के दौरान 14-दिवसीय खजाना बिलों में राज्यों द्वारा किया जाने वाला साप्ताहिक औसत निवेश 35859 करोड रुपये रहा जो पिछले तदनुरूप अवधि के दौरान किये गये 21847 करोड रुपये की तुलना में काफी अधिक है।
मौद्रिक और चलनिधि स्थितियां
- मौद्रिक और चलनिधि स्थितियां 2005-06 के अंतिम चार महीनों के दौरान थोड़ा कठोर रहने के बाद बैंक ऋण में बनी रही वृद्धि के बावजूद 2006-07 की पहली तिमाही में सुगम रहीं।
- वर्ष 2006-07 की पहली तिमाही में बैंक जमा राशियों और ऋण ने सुदृढ़ वृद्धि दर्ज की।राजकोषीय वर्ष 2006-07 अब तक (31 मार्च 2006 और 7 जुलाई 2006 के बीच) के दौरान बैंक जमा राशियां और ऋण क्रमश: 66268 करोड़ रुपये तथा 40789 करोड़ रुपये तक बढेॅ जबकि 2005-06 (1 अप्रैल 2005 और 8 जुलाई 2005 के बीच) की तदनुरूप अवधि के दौरान ये क्रमश: 20386 करोड रुपये और 26053 करोड रुपये थे। अनुसूचित वाणिज्य बैंकों के खाद्येतर ऋण ने वर्ष दर वर्ष आधार पर 7 जुलाई 2006 को 32.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की जो कि एक वर्ष पहले के 31.0 प्रतिशत के उच्च आधार से अधिक है।
- मुद्रा आपूर्ति (एम3) में एक वर्ष पहले के 13.8 प्रतिशत की तुलना में 7जुलाई 2006 को वर्ष दर वर्ष आधार पर 18.8 प्रतिशत का विस्तार हुआ।
- प्रारक्षित मुद्रा में एक वर्ष पहले के 18.0 प्रतिशत की तुलना में 14 जुलाई 2006 को वर्ष दर वर्ष आधार पर 16.0 प्रतिशत का विस्तार हुआ।
मूल्य स्थिति
- कच्चे तेल के काफी भारी अंतर्राष्टी्रय मूल्यों के सतत दबाव की प्रतिक्रिया में 2006-07 पहली तिमाही में अनेक देशों में हेडलाइन मुद्रास्फीति और भी ज्यादा हो गयी। मुख्य मुद्रास्फीति और स्फीतिगत प्रत्याशाएं जो कि अभी तक अपेक्षाकृत अनुकूल बनी हुई थीं वे भी हाल के महीनों में थोडी बढ़ गयीं। कच्चे तेल के अंतर्राष्ट्रीय मूल्यों में हुई वृद्धि का एक महत्वपूर्ण हिस्सा जो कि स्थायी स्वरूप का माना जा रहा है, के साथ ही बहुत से केंद्रीय बैंकों ने मुद्रास्फीति और स्फीतिगत प्रत्याशाओं को नियंत्रित रखने के लिए अपनी मौद्रिक नीतियां कठोर कर दीं।
- भारत में आपूर्ति पक्ष के कारक 2006-07 की पहली तिमाही के दौरान मुद्रास्फीति को संचालित करने वाले प्रमुख कारक बने रहे। ऊंचे तेल मूल्यों के अलावा प्राथमिक खाद्य वस्तुओं के मूल्यों ने भी पहली तिमाही में स्फीति पर बढ़त वाला दबाव दिखाया। तिस पर भी हेडलाइन मुद्रास्फीति 2006-07 की पहली तिमाही में सांकेतिक निर्दिष्ट पथ के अंदर ही रही।
- भारत में वर्ष दर वर्ष थोक मूल्य स्फीति एक वर्ष पहले के 4.5 प्रतिशत की तुलना में 8जुलाई 2006 को 4.7 प्रतिशत थी।
वित्तीय बाजार
- मांग मुद्रा दरें तिमाही के दौरान सुगम रहीं और सामान्यत:रिवर्स रिपो दर के आसपास रहीं। ओवरनाईट मनी मार्केट के संपार्श्विक(कोलेटरल) खंड में ब्याज दरें तिमाही के दौरान रिपो दर और मांग मुद्रा दर से कम रहीं।
- विदेशी मुद्रा बाजार मई-जून 2006 के दौरान भारतीय रुपये में गिरावट के बावजूद व्यवस्थित रहा।
- सरकारी प्रतिभूति बाजार में प्रतिलाभ इस तिमाही के दौरान बढ़े। चूंकि अल्पावधि की तुलना में दीर्घावधि में वृद्धि अधिक थी इसलिए प्रतिलाभ वक्र गहरा गया।
- ऋण की मजबूत मांग के चलते तिमाही के दौरान जमा और उधार दरों में मामूली वृद्धि हुई।
बाह्य अर्थव्यवस्था
- कच्चे तेल के रिकार्ड ऊंचे अतर्राष्ट्रीय मूल्यों के दबाव के बावजूद 2005-06 के दौरान भारत के भुगतान संतुलन की स्थिति सुगम रही। चालू खाता घाटा सदेउ(जीडीपी) के 1.3 प्रतिशत पर संतुलित रहा। पूंजी प्रवाहों के प्रमुख घटकों के अंतर्गत निवल अंर्तवाह एक वर्ष पहले की तुलना में अधिक रहे और 2005-06 के दौरान भुगतान संतुलन की समग्र स्थिति में अधिशेष दर्ज कराया।
- अप्रैल-जून 2006 के दौरान गतिविधियों ने कुछ कम गति के बावजूद व्यापारिक माल के निर्यातों और तेल से इतर वस्तुओं के आयातों में सतत सुदृढ़ वृद्धि दर्शाई। कच्चे तेल के अंतर्राष्ट्रीय मूल्यों में और बढोत्तरी के परिप्रेक्ष्य में तेल आयात बहुत अधिक रहे। व्यापार घाटा अप्रैल-जून 2005 के 10.5 बिलियन अमरीकी डालर से बढ़कर अप्रैल-जून 2006 में 12.6 बिलियन अमरीकी डालर हो गया।
- विदेशी संस्थागत निवेश प्रवाहों को छोड़कर पूंजी प्रवाहों में 2006-07 के दौरान अब तक उछाल रहा है।
- भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 14 जुलाई 2006 को 162.7 बिलियन अमरीकी डालर रहा जो मार्च 2006 के अंत की तुलना में 11.0 बिलियन अमरीकी डालर अधिक है।
अल्पना किल्लावाला
मुख्य महाप्रबंधक
प्रेस प्रकाशनी: 2006-07/112
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