मुद्रास्फीति सूचकांक राष्ट्रीय बचत प्रतिभूतियाँ – संचयी (आईआईएनएसएस-सी)
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आरबीआई की वर्तमान दिशानिर्देश के अनुसार, बैंक इन प्रतिभूतियों के सापेक्ष ऋणों पर ब्याज दर स्वयं निर्धारित कर सकता है, बशर्ते ऐसी ब्याज दर आधार दर पर या उससे ऊपर हो।
- अन्य जी-सेक की तरह, आईआईबी पर कूपन छमाही आधार पर भुगतान किए जाएंगे।
- नियत कूपन दर, समायोजित मूलधन पर भुगतान किए जाएंगे।
उत्तर: खाते में केवल कार्यालय के व्यय हेतु सामान्य बेंकिंग चैनल के माध्यम से मुख्यालय से प्राप्त निधि और/ अथवा संविदा के अंतर्गत प्राप्य रुपया राशि, यदि कोई हो, जमा की जाएगी और अन्य कोई भी राशि रिज़र्व बैंक की पूर्वानुमति के बिना जमा नहीं की जानी चाहिए। उसी प्रकार इस खाते में कार्यालय के स्थानीय व्यय का वहन करने तथा परियोजना के समापन/ पूर्ति लंबित होने तक सविरामी विप्रेषणों को इस खाते में डेबिट किया जाए।
सविरामी विप्रेषणों के लिए एडी बैंक को लेनदेन की वास्तविकता से संतुष्ट होना चाहिए और निम्नलिखित दस्तावेजों की प्रस्तुति को सुनिश्चित करना चाहिए:
ए) लेखा-परीक्षक/ सनदी लेखाकार द्वारा इस आशय का प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया जाए कि आयकर, आदि सहित भारत में शेष देयताओं के लिए पर्याप्त प्रावधान कर लिया गया है।
बी) पीओ से इस आशय का वचनपत्र कि इस विप्रेषण से भारत में परियोजना पूरी होने में कोई असर नहीं पड़ेगा एवं भारत में किसी भी तरह की देयता हेतु निधि कम पड़ने पर विदेश से आवक विप्रेषण मंगा कर इसे पूरा किया जाएगा।
Ans : User institutions enjoy many benefits from the ECS Debit Scheme like,
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Savings on administrative machinery and costs of collecting the cheques from customers, presenting in clearing, monitoring their realisation and reconciliation.
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Better cash management because of realisation / recovery of dues on due dates promptly and efficiently.
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Avoids chances of loss / theft of instruments in transit, likelihood of fraudulent access to the paper instruments and encashment thereof.
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Realisation of payments on a uniform date instead of fragmented receipts spread over many days.
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Cost effective.
पृष्ठ अंतिम बार अपडेट किया गया: दिसंबर 11, 2022