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भारतीय रिज़र्व बैंक की आधिकारिक वेबसाइट
देशी जमा
IV. शेयरों और डिबेंचरों की जमानत पर अग्रिम
नहीं। बैंकों पर शेयरों की शॉर्ट सेल करने का प्रतिबंध है।
विद्युत प्रभारों का भुगतान, सीमा शुल्क, किराये पर खरीद /पट्टा किराया किस्तों, प्रतिभूतियों की बिक्री और अन्य प्रकार के वित्तीय निभाव से संबंधित बिलों की बैंकों को बट्टे पर भुनाई नहीं करनी चाहिए।
गैर-बैंकिंग गैर-वित्तीय कंपनियों की सार्वजनिक जमाराशि योजनाओं के अंतर्गत बैंकों द्वारा अपनी निधियों के निवेश पर कोई प्रतिबंध नहीं है, परंतु ऐसी कंपनियों की सार्वजनिक जमाराशि योजना में किया गया निवेश बैंकों द्वारा अपने तुलनपत्र में तथा बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 और भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के अंतर्गत भेजी गयी विवरणियों में ऋण/अग्रिम के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिए।
बैंक सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के बांड के आबंटन पत्र निम्नलिखित शर्तों के अधीन खरीद सकते हैं -i. अंतर बैंक लेनदेन को छोड़कर सभी लेनदेन केवल मान्यता प्राप्त शेयर बाज़ारों और पंजीकृत दलालों के माध्यम से किए जाने चाहिए।ii. बांड खरीदते समय बैंक को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसे प्रतिभूति का स्पष्ट हक मिलता है तथा द्वितीयक बाजार में उस प्रतिभूति का क्रय-विक्रय किया जा सकता है।iii. इस प्रकार का लेनदेन करने के लिए बैंक को बोर्ड के अनुमोदन से अपना आंतरिक दिशानिर्देश निर्धारित करना चाहिए।
ऋणों /अग्रिमों की प्रतिभूति के रूप में बैंकों द्वारा स्वीकृत शेयरों /डिबेंचरों /बांडों का मूल्य निर्धारण मौजूदा बाजार मूल्य के आधार पर किया जाना चाहिए।
हाँ. बैंक कंपनियों को एक वर्ष की अधिकतम अवधि के लिए प्रत्याशित इक्विटी प्रवाह /निर्गम और अपरिवर्तनिय डिबेंचर, बाह्य वाणिज्यिक उधार, ग्लोबल डिपॉजिटरी रसीदों से प्राप्त होने वाली राशि तथा / या विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के रूप में प्राप्त होने वाली निधि को ध्यान में रखते हुए ‘ब्रिज लोन’ स्वीकृत कर सकते हैं, बशर्ते बैंक इस बात से संतुष्ट हो कि उधारकर्ता कंपनी ने उपर्युक्त संसाधन /निधि जुटाने के लिए पक्की व्यवस्था की है। बैंक द्वारा स्वीकृत ब्रिज लोन पूंजी बाजार में बैंक के एक्सपोज़र की 5 प्रतिशत की निर्धारित उच्चतम सीमा के भीतर होगा।
शेयरों, डिबेंचरों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के बांडों की जमानत पर व्यक्तियों को स्वीकृत ऋण / अग्रिम, यदि प्रतिभूति भैतिक रूप में हो तो 10 लाख रुपये और यदि प्रतिभूति ‘अमूर्त’ रूप में हो तो 20 लाख रुपये से अधिक नहीं होना चाहिए। आरंभिक सार्वजनिक प्रस्ताव (आइपीओ) में अभिदान के लिए व्यक्ति को 10 लाख रुपये तक अधिकतम वित्त स्वीकृत किया जा सकता है। परंतु, बैंक को अन्य कंपनियों के आइपीओ में निवेश के लिए कंपनियों को वित्त उपलब्ध नहीं करना चाहिए। बैंक कर्मचारी स्टॉक विकल्प योजना (इएसओपी) के अंतर्गत कर्मचारियों को अपनी कंपनियों के शेयर खरीदने के लिए शेयरों के क्रय मूल्य के 90 प्रतिशत या 20 लाख रुपये, इनमें जो भी कम हो, तक अग्रिम स्वीकृत कर सकते हैं। आइपीओ में अभिदान के लिए व्यक्तियों को ऋण देने के लिए गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को वित्त उपलब्ध नहीं कराया जाना चाहिए। आइपीओ में अभिदान के लिए बैंक द्वारा स्वीकृत ऋणों / अग्रिमों को पूंजी बाजार का एक्सपोज़र मानना चाहिए।
शेयरों की जमानत /गारंटी जारी करने के आधार पर दिए गए सभी अग्रिमों के लिए 50 प्रतिशत का एकसमान मार्जिन निर्धारित किया गया है। इस 50 प्रतिशत के मार्जिन के भीतर पूंजी बाज़ार परिचालनों के संबंध में बैंकों द्वारा जारी गारंटियों के मामले में, कम से कम 25 प्रतिशत का नकद मार्जिन होना चाहिए।
V. दान
हाँ. लाभ अर्जक बैंक एक वित्त वर्ष के दौरान पिछले वर्ष में बैंक के प्रकाशित लाभ की एक प्रतिशत राशि तक कुल दान दे सकते हैं, परंतु, प्रधान मंत्री राहत कोष तथा व्यावसायिक निकायों / संस्थाओं यथा भारतीय बैंक संघ, राष्ट्रीय बैंक प्रबंधन संस्थान, भारतीय बैंकर्स संस्थान, बैकिंग कार्मिक चयन संस्थान, भारतीय विदेशी मुद्रा व्यापारी संघ को वर्ष के दौरान दिया गया अंशदान /अभिदान उक्त उच्चतम सीमा में शामिल नहीं होगा। एक वर्ष के दौरान अनुमत सीमा की अप्रयुक्त राशि दान के उद्देश्य से अगले वर्ष के लिए आगे नहीं ले जायी जा सकती।
हाँ. हानि में चल रहे बैंक एक वित्त वर्ष के दौरान केवल 5 लाख रुपये तक दान दे सकते हैं।
हां, बैंकों की विदेशी शाखाएँ विदेश में दान दे सकती हैं, बशर्तें बैंक पिछले वर्ष के प्रकाशित लाभ के एक प्रतिशत की निर्धारित उच्च्तम सीमा का अतिक्रमण नहीं करते।
VI. परिसर ऋण
i. बैंकों के निदेशक मंडल को बैंकों के उपयोग के लिए पट्टा/किराये के आधार पर परिसर लेने के संबंध में सभी पहलुओं को शामिल करते हुए नीति निर्धारित करनी चाहिए और महानगरीय, शहरी, अर्द्ध-शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए अलग-अलग परिचालनात्मक दिशानिर्देश बनाना चाहिए। इन दिशानिर्देशों में विभिन्न स्तरों पर शक्तियों का प्रत्यायोजन भी शामिल होना चाहिए। ग्रामीण केंद्रों को छोड़कर अन्य केंद्रों पर परिसर छोड़ने या दूसरा परिसर लेने के संबंध में निर्णय केंद्रीय कार्यालय के स्तर पर वरिष्ठ कार्यपालकों की एक समिति द्वारा लिया जाना चाहिए।ii. पट्टा/किराये के आधार पर परिसर देने वाले मकान मालिकों को ऋण मंजूर करने के संबंध में बैंक के निदेशक मंडल को अलग से नीति निर्धारित करनी चाहिए। ऐसे ऋणों पर ब्याज दर भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी उधार दर संबंधी निदेशों के अनुरूप निर्धारित की जानी चाहिए तथा 2 लाख रुपये से अधिक के ऋण के मामले में न्यूनतम उधार दर बेंचमार्क मूल उधार दर (बीपीएलआर) होनी चाहिए। बैंक की सामान्य प्रथा के अनुरूप ब्याज दर साधारण या चक्रवृद्धि हो सकती है, जैसा कि अन्य मीयादी ऋणों पर लागू हो।iii. मकान मालिकों की वास्तविक शिकायतों को शीघ्रता से दूर करने के लिए बैंकों को एक उपयुक्त पद्धति विकसित करनी चाहिए।iv. सरकारी क्षेत्र के बेंकों द्वारा मकान मालिकों को दिए गए अग्रिमों तथा पट्टे /किराये पर लिए गए परिसरों पर किराये (कर आदि तथा 25 लाख रुपये और उससे अधिक की जमाराशियों सहित) के संबंध में तय की गयी संविदा के ब्यौरे सरकार के विद्यमान निर्देशों के अनुसार केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो को भेजे जाने चाहिए। यह अपेक्षा निजी क्षेत्र के बैंकों पर लागू नहीं होगी।
VII सेवा प्रभार
भारतीय बैंक संघ ने बैंकों द्वारा दी जाने वाली विभिन्न सेवाओं के लिए सेवा प्रभार निर्धारित करने की प्रथा बंद कर दी है। सितंबर 1999 से भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंकों को यह स्वतंत्रता दी है कि वे अपने निदेशक मंडल के अनुमोदन से सेवा प्रभार निर्धारित कर सकते हैं।
पृष्ठ अंतिम बार अपडेट किया गया: दिसंबर 10, 2022
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