भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला 3/2013 भारत में जाली करेंसी नोटों का अनुमान-वैकल्पिक पद्धतियां
19 मार्च 2013 भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला 3/2013 भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपनी वेबसाइट पर आरबीआई वर्किंग पेपर श्रृंखला के तहत “भारत में जाली करेंसी नोटों का अनुमान-वैकल्पिक पद्धतियां” शीर्षक वर्किंग पेपर डाला। यह पेपर श्री संजय बोस और डॉ. अभिमान दास द्वारा लिखा गया है। जालसाजी से भारत सहित पूरे विश्व में करेंसी के लिए चुनौतियां बढ़ रही हैं। मुद्रण प्रौद्योगिकी में हाल की उन्नति ने केवल जाली नोटों के उत्पादन में सहायता मिली है। भारत में प्रत्यक्ष रूप से नोटों की जालसाजी की मात्रा कम होने के बावजूद, यह मुद्रा और वित्तीय प्रणाली के लिए गंभीर खतरा है। भारत सरकार और रिज़र्व बैंक ने नोटों की दुबारा डिजाइनिंग करके और जागरूकता अभियानों के माध्यम से करेंसी की प्रामाणिकता के बारे में आम जनता की समझ बढ़ाने के प्रयास द्वारा इस खतरे पर कार्रवाई की है। तथापि, जालसाजी को रोकने के लिए विभिन्न उपायों की प्रभावक्षमता का आकलन करने हेतु किसी व्यक्ति को इस खतरे की सही प्रकृति को समझने की जरूरत है क्योंकि यह जालसाजी आर्थिक गतिविधि पर खतरा है। नियमित आधार पर जालसाजी के स्तर की जांच करना आवश्यक है। ऐसी जांच सैद्धांतिक और अनुभवजन्य दोनो दृष्टिकोणों से महत्वपूर्ण है। जालसाजी की मात्रा का आकलन आमतौर पर वसूलियों के वर्तमान प्रवाह का अवलोकन करके या परिचालन में कुल नोटों के अनुपात के रूप में बकाया स्टाक के अनुमान द्वारा लगाया जाता है। तथापि, वसूलियों का प्रवाह और जालसाजी की पकड़ का सीधे अवलोकन किया जा सकता है, जबकि जाली नोटों के कुल स्टाक की सीधे माप नहीं की जा सकती है। इस अंतराल को पाटने के लिए इस पेपर में संभावना मॉडल आधारित पद्धति का प्रस्ताव किया गया है जो स्थायी तरीके से जालसाजी का विश्वसनीय सांख्यिकी अनुमान प्राप्त करने में वैज्ञानिक और व्यवहारिक समाधान प्रदान करती है। यह तकनीकी पेपर भारत में जाली नोटों का अनुमान लगाने के लिए कुछ व्यवहार्य पद्धतियों की जांच करता है। इसमें मुद्रा अनुसंधान प्रणाली के विभिन्न स्तरों पर विपरीत प्रतिरूप तकनीक अपनाए जाने और भारत में जाली नोटों की घटना को समझने के लिए अन्य केन्द्रीय बैंकों द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रियाओं का पता लगाना भी शामिल है। तथापि, मानक विपरीत प्रतिरूप अपनाने के लिए पहचान किए गए पहले, दूसरे और बाद के जाली नोटों के प्रत्येक हस्तक्षेप स्तर पर संसाधित नोटों के आंकड़ों की जरूरत होती है। इस प्रक्रिया को लागू करना कठिन है और यह अव्यवहारिक है। इस पेपर में निम्नलिखित प्रस्तावित किया गया हैः
आर. आर. सिन्हा प्रेस प्रकाशनी : 2012-2013/1568 |
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