भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला 1: विनियमन पण्य-वस्तु बाजार की बदलती गतिशीलता के अनुकूल रहे
8 जनवरी 2014 भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला 1: भारतीय रिज़र्व बैंक ने आज अपनी वेबसाइट पर भारतीय रिज़र्व बैंक वर्किंग पेपर श्रृंखला के अंतर्गत “वैश्विक चलनिधि, वित्तीयकरण और पण्य-वस्तु मूल्य मुद्रास्फीति” शीर्षक वाला वर्किंग पेपर डाला है। यह पेपर कुमार रिषभ और सोमनाथ शर्मा द्वारा लिखा गया है। उच्चतर और अस्थिर वैश्विक पण्य-वस्तु कीमतों से कई पण्य-वस्तु आयातक देशों में घरेलू मौद्रिक नीति के लिए अत्यधिक चुनौतियों का खतरा है। इस संदर्भ में यह पेपर वैश्विक पण्य-वस्तु कीमत मुद्रास्फीति के पीछे पण्य-वस्तु बाजारों के वित्तीयकरण (काल्पनिक कारोबार द्वारा शामिल), वैश्विक चलनिधि (निजी और सरकारी) तथा मूल कारकों (उभरती बाजार मांग) की भूमिका की जांच करता है। इस पेपर के प्रमुख निष्कर्ष हैं:
इस पेपर के परिणामों का तात्पर्य यह है कि पण्य-वस्तु फ्यूचर्स बाजारों का विनियमन पण्य-वस्तु बाजारों की बदलती गतिशीलता के अनुकूल करना होगा और शायद मुख्य रूप से स्वैप व्यापारियों को शामिल करने वाले ओवर दि काउंटर (ओटीसी) बाजार सुधारों पर मुख्य जोर पर्याप्त नहीं हो। वैश्विक निजी चलनिधि की पण्य-वस्तु बाजारों में मुद्रास्फीतिकारी प्रवृत्तियों के निर्माण के लिए वैश्विक मौद्रिक आंकड़ों के साथ अधिक बारीकी से निगरानी करनी होगी। उभरते हुए बाजारों की बढ़ती मांग के संदर्भ में आपूर्ति पक्ष की कार्रवाई अपेक्षित है जिसमें अधिकांशत: दीर्घावधी प्रवृत्ति वाली हैं। यह पेपर पण्य-वस्तु मुद्रास्फीति के मुख्य संचालकों का पता लगाने के लिए सदिश स्वप्रतिगमन (वीएआर) संरचना का उपयोग करता है। यह इस विषय पर वर्तमान साहित्य में दो तरह से योगदान देता है। पहला, वैश्विक चलनिधि की समझ में हाल की उन्नति का अनुसरण करते हुए पण्य-वस्तु बाजारों में मुद्रास्फीतिकारी दवाबों के सूचकों की पहचान करने के लिए ‘निजी चलनिधि’ और ‘सरकारी चलनिधि’ के बीच के अंतर का उपयोग किया गया है। दूसरा, पण्य-वस्तु कीमतों पर विभिन्न प्रकार के गैर-वाणिज्यिक पण्य-वस्तु कारोबारियों के कार्यकलापों के प्रभाव का अध्ययन किया गया है। * भारतीय रिज़र्व बैंक ने मार्च 2011 में आरबीआई वर्किंग पेपर श्रृंखला शुरू की थी। ये पेपर रिज़र्व बैंक के स्टाफ सदस्यों द्वारा किए जा रहे अनुसंधान को प्रस्तुत करते हैं और टिप्पणियां और चर्चा के लिए इनका प्रसार किया जाता है। इन पेपरों में व्यक्त विचार लेखकों के विचार होते हैं और भारतीय रिज़र्व बैंक के विचार नहीं होते हैं। टिप्पणियां और अभिमत लेखकों को भेजे जा सकते हैं। उद्धृरण और इन पेपरों का उपयोग में इसके अनंतिम स्वरूप को ध्यान में रखा जाए। अजीत प्रसाद प्रेस प्रकाशनी : 2013-2014/1378 |
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