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प्राधिकृत व्यापारी बैंकों द्वारा समुद्रपारीय विदेशी मुद्रा उधार- सीमा में वृध्दि

आरबीआइ/2008-09/227
ए पी(डीआइआर सिरीज़)परिपत्र सं.23

15 अक्तूबर 2008

सभी प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी -। बैंक

महोदय/महोदया

प्राधिकृत व्यापारी बैंकों द्वारा समुद्रपारीय विदेशी मुद्रा उधार- सीमा में वृध्दि

प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-।(एडी श्रेणी-।) बैंकों का ध्यान 24 मार्च 2004 के ए.पी.(डीआइआर सिरीज) परिपत्र सं.81 की ओर आकर्षित करते हैं, जिसके अनुसार;

(i) मौजूदा बाह्य वाणिज्य उधार, अपने प्रधान कार्यालय , समुद्रपारीय शाखाएं तथा संपर्की बैंकों से से प्राप्त ऋण और ओवरड्राफ्टस् और नास्ट्रो खाते में ओवरड्राफ्टस् (पांच दिनों के भीतर समायोजित न हुए) सहित सभी श्रेणियों की समुद्रपारीय विदेशी मुद्रा उधार, पिछली तिमाही की समाप्ति पर उनकी अक्षत टियर-। पूंजी के 25 प्रतिशत अथवा 10 मिलियन अमरीकी डॉलर (अथवा उसके समतुल्य), जो भी अधिक हो ,से अधिक नहीं होना चाहिए, और

(ii) विदेशी मुद्रा में निर्यात ऋण के वित्तपोषण के प्रयोजन हेतु प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-। बैंकों द्वारा समुद्रपारीय उधार, विदेशी बैंकों के प्रधान कार्यालयों द्वारा टायर-।। पूंजी के रूप में भारत में उनकी शाखाओं में रखे गये गौण ऋण, नवोन्मेषी बेमियादी ऋण लिखतों को जारी करते हुए वर्धित/बढ़ायी गयी पूंजीगत निधियां और विदेशी मुद्रा में ऋण पूंजी लिखत और रिज़र्व बैंक के विशिष्ट अनुमोदन से अन्य समुद्रपारीय उधार इस सीमा से बाहर होंगे ।

2. प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-। बैंको को समुद्रपारीय निधियां प्राप्त करने में और अधिक लचीलापन प्रदान करने की दृष्टि से यह निर्णय लिया गया है कि इस सुविधा को अधिक उदार बनाया जाए ।तदनुसार, प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-। बैंक, अब आगे से अपने प्रधान कार्यालय, समुद्रपारीय शाखाओं और संपर्क बैंकों से निधियां उधार ले सकते हैं तथा पिछली तिमाही समाप्त होने तक नास्ट्रो खातों में उनकी अक्षत टियर-। पूंजी के 25 प्रतिशत की मौजूदा सीमा की तुलना में 50 प्रतिशत की सीमा तक अथवा 10 मिलियन अमरीकी डॉलर (अथवा उसके समकक्ष), जो भी अधिक हो (विदेशी मुद्रा और पूंजीगत लिखतों में निर्यात ऋण के वित्तपोषण के लिए उधार से इतर ) ओवरड्राफ्टस् ले सकते हैं।

3. 24 मार्च 2004 के ए.पी.(डीआइआर सिरीज ) परिपत्र सं. 81 में निहित सभी अन्य अनुदेश अपरिवर्तित रहेंगे ।

4. प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंक इस परिपत्र की विषयवस्तु से अपने संबंधित घटकों और ग्राहकों को अवगत करा दें।

5. विदेशी मुद्रा प्रबंध (विदेशी मुद्रा उधार देना और उधार लेना) अधिनियम 2000 (3 मई 2000 की अधिसूचना सं.फेमा.3/2000-आरबी) में आवश्यक संशोधन अलग से जारी किए जाएंगे ।

6. इस परिपत्र में समाहित निदेश विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 (1999 का 42) की धारा 10(4) और धारा 11(1) के अंतर्गत जारी किए गए हैं और अन्य किसी कानून के अंतर्गत अपेक्षित अनुमति/अनुमोदन, यदि कोई हो, पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बगैर है।

भवदीय

(सलीम गंगाधरन)
प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक

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