मौद्रिक और ऋण नीति संबंधी उपाय - वर्ष 2001-2002 की मध्यावधि समीक्षा - अनर्जक आस्तियों (एन पी ए) का निपटारा
मौद्रिक और ऋण नीति संबंधी उपाय - वर्ष 2001-2002की मध्यावधि समीक्षा - अनर्जक आस्तियों (एन पी ए) का निपटारा
संदर्भ : बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 39 / 21.04.048/2001-02
27 अक्तूबर 2001
05 कार्तिक 1923 (शक)
सभी वाणिज्य बैंक
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर)
प्रिय महोदय,
मौद्रिक और ऋण नीति संबंधी उपाय - वर्ष 2001-2002
की मध्यावधि समीक्षा - अनर्जक आस्तियों (एन पी ए) का निपटारा
कृपया आप गवर्नर महोदय का 22 अक्तूबर 2001 का पत्र सं. एमपीडी. बीसी. 210/ 07.01. 279/2001-2002 देखें, जिसके साथ ‘‘वर्ष 2001-2002 की मौद्रिक और ऋण नीति की मध्यावधि समीक्षा’’ पर वक्तव्य की एक प्रति संलग्न की गयी है ।
2. बैंकों द्वारा अनर्जक आस्तियों (एन पी ए) के निपटारे के संबंध में, उक्त वक्तव्य के पैराग्राफ 75 और 77 की ओर ध्यान आकृष्ट किया जाता है । 27 जुलाई 2000 के परिपत्र सं. बैंपविवि. बीपी. बीसी. 11/21.01.040/99-00 के द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से संबंधित, देय राशि की वसूली द्वारा अत्यधिक पुरानी अनर्जक आस्तियों के स्टॉक को कम करने के लिए हमने एक बारगी प्रोत्साहन देने हेतु सरलीकृत, विवेकाधीन रहित और भेदभाव रहित दिशा-निर्देश जारी किये थे । उपर्युक्त दिशा-निर्देशों में लघु क्षेत्रों सहित सभी क्षेत्रों में 5 करोड़ रुपये तक के खातों के मामलों को शामिल किया गया था, परंतु इनमें, जानबूझकर चूक करने, धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार के मामले शामिल नहीं थे । इन दिशा-निर्देशों में निर्दिष्ट निपटारे की योजना जून 2001 तक चालू थी और इस तारीख तक प्राप्त सभी आवेदनों को सितंबर 2001 तक प्रोसेस किया जाना था । उक्त योजना को और आगे बढ़ाने के लिए कुछ अभिवेदन प्राप्त हुए हैं । इस बात को ध्यान में रखते हुए कि इन दिशा-निर्देशों का प्रयोजन विनिर्दिष्ट समय सीमा के अंदर एक बारगी निपटारे का एक अवसर प्रदान करना था और पहले ही पर्याप्त समय प्रदान किया जा चुका है, इस लिए इस योजना को आगे न बढ़ाने का प्रस्ताव है ।
3. तथापि 28 जुलाई 1995 के हमारे परिपत्र बैंपविवि. सं. बीपी. बीसी. 81 /21.01.040/95 द्वारा उपलब्ध कराया गया, अनर्जक आस्तियों के समझौता या विचार-विमर्श करके निपटारे का व्यापक ढांचा लागू रहेगा । बैंक, समझौता करके और आपसी विचार-विमर्श करके वसूली करने और बट्टे खाते डालने के लिए अपने निदेशक मंडलों के अनुमोदन से, विशेष कर अनर्जक आस्तियों के अंतर्गत आने वाले पुराने और निपटाये न गये मामलों के लिए नीतियां बनाने और उन्हें लागू करने के लिए स्वतंत्र हैं । इस संबंध में एक बारगी निपटारे की योजना के अनुभव का भी ध्यान रखा जाना चाहिए । परंतु यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि बैंक के निदेशक-मंडलों द्वारा लागू की गयी कोई भी योजना सरल, बिना भेदभाव की और पारदर्शी हो ताकि सभी पात्र मामलों में एक समान व्यवहार किया जा सके ।
भवदीय
(सी. आर. मुरलीधरन)
मुख्य महा प्रबंधक
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