स्वयं सहायता समूह – बैंक सहलग्नता कार्यक्रम पर मास्टर परिपत्र
आरबीआई / 2011-12 /82 1 जुलाई 2011 अध्यक्ष/ प्रबंध निदेशक/मुख्य कार्यपालक अधिकारी महोदय स्वयं सहायता समूह – बैंक सहलग्नता कार्यक्रम पर मास्टर परिपत्र भारतीय रिज़र्व बैंक ने समय-समय पर बैंकों को स्वयं सहायता समूह – बैंक सहलग्नता कार्यक्रम के संबंध में अनेक दिशा-निर्देश / अनुदेश जारी किए हैं। बैंकों को सभी अद्यतन अनुदेश एक स्थान पर उपलब्ध कराने के प्रयोजन से विद्यमान दिशा- निर्देशों / अनुदेशों को समाहित करते हुए एक मास्टर परिपत्र तैयार किया गया है जो इसके साथ संलग्न है। इस मास्टर परिपत्र में, परिशिष्ट में निर्दिष्टानुसार, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा 30 जून 2011 तक उक्त विषय पर जारी सभी परिपत्र समेकित एवं अद्यतन किए गए है। भवदीया ( डॉ. दीपाली पन्त जोशी ) अनुलग्नक : यथोक्त स्वयं सहायता समूह - बैंक सहलग्नता कार्यक्रम पर मास्टर परिपत्र 1. देश में औपचारिक ऋण प्रक्रिया का तेजी से विस्तार होने के बावजूद, बहुत से क्षेत्रों में, विशेष रूप से आकस्मिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए गरीब ग्रामीणों की निर्भरता किसी तरह साहूकारों पर ही थी । ऐसी निर्भरता सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग और जनजातियों के सीमान्त किसानों, भूमिहीन मजदूरों, छोटे व्यवसायियों और ग्रामीण कारीगरों में देखने को मिलती थी जिनकी बचत की राशि इतनी सीमित होती है कि बैंकों द्वारा उसे इक्टठा नहीं किया जा सकता । कई कारणों से इस वर्ग को दिए जाने वाले ऋण को संस्थागत नहीं किया जा सका है । गैर सरकारी संगठनों द्वारा बनाए गए अनौपचारिक समूहों पर नाबार्ड, एशियाई और प्रशांत क्षेत्रीय ऋण संघ (एप्राका) और अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आइ एल ओ) द्वारा किए गए अध्ययनों से यह बात सामने आई है कि स्वयं सहायता बचत और ऋण समूहों में औपचारिक बैंकिंग ढांचे और ग्रामीण गरीबों को आपसी लाभ के लिए एकसाथ लाने की संभाव्यता है तथा उनका कार्य उत्साहजनक था । 2. तदनुसार, नाबार्ड ने गैर-सरकारी संगठनों, बैंकों और अन्य एजेंसिंयों द्वारा प्रवर्तित स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) को शामिल करने हेतु एक प्रायोगिक परियोजना आरंभ की तथा उसे पुनर्वित्त का समर्थन प्रदान किया गया। नाबार्ड द्वारा कुछ राज्यों में परियोजना सहलग्नता के प्रभाव के मूल्यांकन के संबंध में किए गए त्वरित अध्ययन से प्रोत्साहनपूर्ण तथा सकारात्मक विशेषताएं सामने आई हैं यथा स्वयं सहायता समूहों के ऋण की मात्रा में वृध्दि, सदस्यों के ऋण ढांचे में, आय न होने वाली गतिविधियों से उत्पादक गतिविधियों में परिवर्तन, लगभग 100% वसूली कार्यनिष्पादन, बैंकों और उधारकर्ताओं दोनों के लिए लेन-देन लागत में भारी कटौती इत्यादि के साथ-साथ स्वयं सहायता समूह सदस्यों के आय स्तर में क्रमिक वृध्दि । सहलग्नता परियोजना की एक और महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि बैंकों से सहलग्न 85% के लगभग समूह केवल महिलाओं के ही थे । 3. स्वयं सहायता समूहों और गैर संगठनों की कार्यप्रणाली के अध्ययन के विचार से ग्रामीण क्षेत्र में उनकी भूमिका के विस्तार के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक ने श्री. एस. के. कालिया नाबार्ड के तत्कालीन प्रबंध निदेशक की अध्यक्षता में नवबंर 1994 में एक कार्यदल का गठन किया जिसमें प्रमुख गैर सरकारी संगठनों के कार्यकर्ता, शिक्षाविद् परामर्शदाता और बैंकर थे । कार्यदल का विचार था कि औपचारिक बैंकिंग प्रणाली से अब तक अछूते ग्रामीण गरीब लोगों को ऋण उपलब्ध कराने की स्थिति में सुधार के लिए एसएचजी को बैंकों से सहलग्न करना एक लागत प्रभावी, पारदर्शी और लचीला उपाय है इससे ग्रामीण क्षेत्रों में ऋण वसूली तथा बारंबार अंतराल पर छोटे उधारकर्ताओं के साथ लेन-देन में उच्च लेन-देन लागत की बैंकों की दोहरी समस्या का अति आवश्यक समाधान प्रदान की जाने की आशा है। अतः कार्यदल को ऐसा महसूस हुआ कि नीति का मुख्य उद्देश्य स्व-सहायता समूहों के गठन तथा बैंकों से उनकी सहलग्नता को प्रोत्साहित करना है और इस संबंध में बैंकों को मुख्य भूमिका निभानी होगी। कार्यदल ने सिफारिश की थी कि बैंकों को सहलग्नता कार्यक्रम को एक कारोबारी अवसर के रूप में लेना चाहिए तथा वे अन्य बातों के साथ-साथ संभाव्यता, स्थानीय आवश्यकताओं, उपलब्ध प्रतिभा / कौशल आदि को ध्यान में रखकर क्षेत्र-विशिष्ट और समूह - विशिष्ट ऋण पैकेज बनाएं। 4. रिज़र्व बैंक ने माइक्रो-वित्त वितरण संबंधी विभिन्न मामलों की जांच करने हेतु अक्तूबर 2002 में चार अनौपचारिक समूह गठित किए थे। समय-समय पर भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति तथा केंद्र की बजट घोषणाओं में बैंकों के साथ एसएचजी की सहलग्नता पर ज़ोर दिया गया है तथा इस संबंध में बैंकों को विभिन्न दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं। एसएचजी सहलग्नता कार्यक्रम को बढ़ावा देने तथा उसे कायम रखने हेतु बैंकों को सूचित किया गया कि वे नीति और कार्यान्वयन दोनों स्तर पर एसएचजी उधार देने को अपनी मुख्य धारा के ऋण परिचालनों का एक भाग ही मानें। एसएचजी सहलग्नता को वे अपनी कोर्पोरेट कार्यनीति / योजना, अपने अधिकारियों और स्टाफ के प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में शामिल करें तथा इसे एक नियमित व्यवसाय गतिविधि के रूप में लागू करें और आवधिक रूप से उसकी निगरानी और समीक्षा करें। 5. प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अन्तर्गत एक पृथक खंड : बैंक स्वयं सहायता समूह को दिए अपने उधारों की सूचना बिना किसी कठिनाई के दे सकें, अतः यह निर्णय लिया गया कि बैंक स्वयं सहायता समूहों/स्वयं सहायता समूहों के सदस्यों को नए खंड, नामतः "स्वयं सहायता समूहों को अग्रिम" के अंतर्गत, चाहे स्वयं सहायता समूहों के सदस्यों को दिए गए ऋण का प्रयोजन कुछ भी हो, आगे ऋण देने के लिए स्वयं सहायता समूहों और/या गैर सरकारी एजेंसियों को दिए गए अपने ऋणों की सूचना दें । स्वयं सहायता समूहों को दिए गए ऋणों को बैंक कमज़ोर वर्गों को दिए गए अपने ऋण के एक भाग के रूप में शामिल करें । 6. बचत बैंक खाता खोलना : पंजीकृत और अपंजीकृत स्वयं सहायता समूह जो अपने सदस्यों की बचत आदतों को बढ़ाने के कार्य में संलग्न हैं, बैंकों के साथ बचत खाते खोलने के पात्र हैं । यह आवश्यक नहीं है कि इन स्वयं सहायता समूहों ने बचत बैंक खाते खोलने से पहले बैंकों की ऋण सुविधा का उपयोग किया हो । 7. एसएचजी उधारियाँ आयोजना प्रक्रिया का भाग हों : एसएचजी को बैंकों द्वारा दिए गए उधारों को प्रत्येक बैंक की शाखा ऋण योजना, ब्लॉक ऋण योजना, जिला ऋण योजना और राज्य ऋण योजना में सम्मिलित किया जाना चाहिए। जब एसएचजी बैंक सहलग्नता कार्यक्रम के अंतर्गत कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं किया जा रहा हो तो इन योजनाओं को तैयार करने में इस क्षेत्र को सबसे अधिक प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इसे बैंक की कोर्पोरेट ऋण योजना का एक महत्वपूर्ण भाग होना चाहिए। 8. मार्जिन और प्रतिभूति मानदण्ड : नाबार्ड के परिचालनगत दिशानिर्देशों के अनुसार स्वयं सहायता समूहों को बैंकों से बचत सहलग्न ऋण स्वीकृत किया जाता है ( यह बचत और ऋण अनुपात 1 : 1 से 1 :4 तक भिन्न-भिन्न होता है)। अनुभव यह दर्शाता है कि समूह के महत्व और दबाव से स्वयं सहायता समूहों के सदस्यों से अत्यधिक वसूली हुई है । बैंकों को सूचित किया गया कि बैंकों को मार्जिन, प्रतिभूति मानदण्डों इत्यादि के संबंध में दी गई लचीलेपन की अनुमति के अन्तर्गत ये प्रायोगिक परियोजनाएं इस प्रायोगिक चरण के बाद भी सहलग्नता कार्यक्रम के अन्तर्गत बने रहेंगे । 9. दस्तावेजीकरण : एक ऐसी आसान प्रणाली, जिसमें न्यूनतम क्रियाविधि और दस्तावेजीकरण की अपेक्षा हो, एसएचजी को ऋण के प्रवाह में वृद्धि करने की पूर्व शर्त है। उधारों के स्वरूप और उधारकर्ता के स्तर को ध्यान में रखते हुए बैंकों को अपने शाखा प्रबंधकों को पर्याप्त मंजूरी अधिकार प्रदान करके ऋण शीघ्र स्वीकृत और संवितरित करने की व्यवस्था करनी चाहिए तथा परिचालनगत सभी व्यवधानों को दूर करना चाहिए । ऋण आवेदन फार्मों, प्रक्रिया और दस्तावेजों को आसान बनाना चाहिए। इससे शीघ्र और सुविधाजनक रूप से ऋण उपलब्ध कराने में सहायता मिलेगी । 10. स्वयं सहायता समूहों में चूककर्ताओं की उपस्थिति : स्वयं सहायता समूहों के कुछ सदस्यों तथा/अथवा उनके परिवारों द्वारा बैंक वित्त के प्रति चूक को सामान्यतया स्वयं सहायता समूह के आड़े नहीं आना चाहिए, बशर्ते कि स्वयं सहायता समूह ने चूक न की हो । तथापि, स्वयं सहायता समूह द्वारा बैंक ऋण का उपयोग बैंक के चूककर्ता सदस्य को देने के लिए न किया जाए । 11. क्षमता निर्माण एवं प्रशिक्षण : सहलग्नता कार्यक्रम में आधार स्तर के पदाधिकारियों और बैंक के नियंत्रक तथा अन्य वरिष्ठ अधिकारियों का सुग्राहीकरण एक महत्वपूर्ण कदम होगा । आधार स्तर और नियंत्रक कार्यालय स्तर पर बैंक अधिकारियों/स्टाफ की प्रशिक्षण आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए बैंक स्वयं सहायता समूहों की सहलग्नता परियोजना के आन्तरिककरण के लिए आवश्यक उपाय कर सकते हैं तथा आधार स्तर के कार्यकर्ताओं के लिए अल्पावधि कार्यक्रम आयोजित कर सकते हैं । साथ ही, उनके मध्यम स्तर के नियंत्रक अधिकारियों तथा वरिष्ठ अधिकारियों के लिए उचित जागरूकता/सुग्राहीकरण कार्यक्रम आयोजित कर सकते हैं । 12. स्वयं सहायता समूह उधार की निगरानी और समीक्षा : स्वयं सहायता समूहों की संभाव्यता और स्वयं सहायता समूहों को उधार देने के संबंध में बैंक शाखाओं को जानकारी न होने के मद्देनजर बैंकों को विभिन्न स्तरों पर नियमित रूप से प्रगति की निगरानी करनी चाहिए । असंगठित क्षेत्र को ऋण उपलब्ध कराने के लिए चल रहे स्वयं सहायता समूह बैंक सहलग्नता कार्यक्रम को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बैंकों को जनवरी 2004 में सूचित किया गया कि राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति और जिला स्तरीय बैंकर्स समिति की बैठकों में स्वयं सहायता समूह बैंक सहलग्नता कार्यक्रम की निगरानी को कार्यसूची की एक मद के रूप में नियमित रूप से रखा जाना चाहिए । इसकी समीक्षा तिमाही आधार पर उच्चत्तम कोर्पोरेट स्तर पर की जानी चाहिए। साथ ही, बैंकों द्वारा नियमित अन्तराल पर कार्यक्रम की प्रगति की समीक्षा की जाए । प्रत्येक वर्ष 30 सितंबर और 31 मार्च को समाप्त छमाही आधार पर नाबार्ड (एम.सी.आइ.डी.), मुम्बई को प्रगति रिपोर्ट भेजी जाए ताकि वह संबंधित रिपोर्ट की छमाही के 30 दिन के भीतर पहुंच जाए । 13. एसएचजी सहलग्नता को प्रोत्साहित करना : बैंकों को अपनी शाखाओं को स्वयं सहायता समूहों को वित्तपोषित करने और उनके साथ सहलग्नता स्थापित करने के लिए पर्याप्त प्रोत्साहन देना चाहिए ताकि प्रक्रिया बिलकुल सरल हो तथा स्थानीय स्थिति से मेल खाने वाली ऐसी प्रक्रिया में पर्याप्त लचीलापन हो । स्वयं सहायता समूहों की कार्यप्रणाली की सामूहिक प्रगति उन पर ही छोड़ दी जाए और न उन्हें विनियमित किया जाए और न ही उन पर औपचारिक ढांचा थोपा जाए । स्वयं सहायता समूहों का वित्तपोषण दृष्टिकोण बिल्कुल बाधारहित होना चाहिए तथा उनमें उपभोग व्यय भी सम्मिलित किया जाए । 14. ब्याज दरें : बैंकों द्वारा स्वयं सहायता समूहों/सदस्य हिताधिकारियों को दिए गए ऋणों पर लागू होने वाली ब्याज दरें उनके विवेकाधिकार पर छोड़ दी जानी चाहिए । 15. स्वयं सहायता समूहों का कुल वित्तीय समावेशन और ऋण आवश्यकता : बैंकों को सूचित किया जाता है कि वे वर्ष 2008-09 के लिए माननीय वित्त मंत्री द्वारा घोषित केंद्रीय बजट के पैरा 93 में कहे गए अनुसार स्वयं सहायता समूह के सदस्यों की ऋण आवश्यकताओं को पूरा करें। मास्टर परिपत्र में समेकित परिपत्रों की सूची
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