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शहरी सहकारी बैंकों के विलय /समामेलन के लिए दिशानिर्देश


आरबीआई /2008-09/365
शबैंवि.यूसीबी.परि.सं.43 /09.16.900/2008-09

30 जनवरी 2009

मुख्य कार्यपालक अधिकारी
सभी प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक

 

महोदय /महोदया

शहरी सहकारी बैंकों के विलय /समामेलन के लिए दिशानिर्देश

कृपया उपर्युक्त विषय पर 02 फरवरी 2005 का हमारा परिपत्र पीसीबी.परि.36/09.16.00 /2004-05 देखें । मौजूदा दिशानिर्देशों में अन्य बातों के साथ यह भी प्रावधान किया गया है कि जिन मामलों में अधिग्रहित बैंक का नेटवर्थ ऋणात्मक है वहाँ अधिग्राही बैंक को स्वयं अथवा राज्य सरकार से अपफ्रन्ट वित्तीय सहायता लेकर अधिग्रहित बैंक की जमाराश् िकी सुरक्षा करनी चाहिए ।

2. तथापि, 31 मार्च 2007 की स्थिति के अनुसार ऋणात्मक नेटवर्थ वाले शहरी सहकारी बैंकों से संबंधित लंबे समय से चले आ रहे मामलों में यह निर्णय लिया गया है कि रिज़र्व बैंक समामेलन की योजना पर भी विचार कर सकता है, जिसमें बीमा और प्रत्यय गारंटी निगम अधिनियम, 1961 की धारा 16(2) के अंतर्गत जमाकर्ताओं को भुगतान का प्रावधान किया गया है अर्थात, अंतरिती बैंक द्वारा वित्तीय अंशदान तथा बड़े जमाकर्ताओं द्वारा त्याग । लंबे समय से चले आ रहे ऐसे मामलों में शहरी सहकारी बैंकों के विलय के लिए विस्तृत दिशानिर्देश अनुबंध I में दिए गए हैं । इसके अतिरिक्त, अंतरणकर्ता बैंक की आस्तियों तथा देयताओं के मूल्यन के लिए विस्तृत दिशानिर्देश अनुबंध II  में दिए गए हैं । अंतरिती बैंक को दी जा सकने वाली आर्थिक सहायताओं को अनुबंध III में सूचीबद्ध किया गया है ।

3. "अनुबंध I, अनुबंध II तथा अनुबंध III में निहित दिशानिर्देश 02 फरवरी 2005 के हमारे परिपत्र के माध्यम से जारी विलय संबंधी दिशानिर्देशों के अतिरिक्त हैं । ध

4. कृपया नए दिशानिर्देश अपने बैंक के निदेशक मंडल के समक्ष सूचनार्थ प्रस्तुत करें ।

5. कृपया प्राप्ति-सूचना भारतीय रिज़र्व बैंक के संबंधित क्षेत्रीय कार्यालय को दें ।

 

भवदीय

(ए.के. खौंड)
प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक

संलग्नक: यथोपरि


अनुबंध I

निक्षेप बीमा और प्रत्यय गारंटी निगम की सहायता वाले शहरी सहकारी
बैंकों (ऋणात्मक नेटवर्थ वाले ) के लिए दिशानिर्देश

डीआईसीजीसी की सहायता से शहरी सहकारी बैंकों (ऋणात्मक नेटवर्थ वाले) के विलय की योजना की मंजूरी पर विचार करने के लिए निम्नलिखित दिशानिर्देश निर्धारित किए गए हैं ।

1. पात्रता :

1.1 रिज़र्व बैंक लंबे समय से चले आ रहे मामलों में अर्थात् ऐसे शहरी सहकारी बैंकों के मामलों में जिनके नेटवर्थ को 31 मार्च 2007 या उसके पहले की वित्तीय स्थिति के संदर्भ में किए गए सांविधिक निरीक्षणों के माध्यम से ऋणात्मक आंका गया था, डीआईसीजीसी की सहायता से उनके विलय पर विचार कर सकता है ।

1.2 विलय किए जाने वाले शहरी सहकारी बैंक को ऐसे राजय में पंजीकृत होना चाहिए जिसने भारतीय रिज़र्व बैंक के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर कर दिए हैं अथवा उसे बहु-राज्यीय सहकारी समितियां अधिनियम, 2002 के अंतर्गत पंजीकृत होना चाहिए जहां निबंधक, सहकारी समितियां संबंधित राज्य के सहकारी समितियां अधिनियम के अंतर्गत जनहित में विलय के आदेश देता है अथवा केंद्रीय निबंधक, सहकारी समितियां बहु-राज्यीय सहकारी समितियां अधिनियम, 2002 की धारा 18 के अंतर्गत समामेलन की योजना तैयार करता है ।

1.3 विलय के प्रस्तावों पर विचार ऐसे मामलों में किया जा सकता है जहां अंतरिती बैंक विलस के बाद के विवेकपूर्ण मानदंडों का अनुपालन करता हो ।

2.आवश्यक शर्तें :

2.1 लेखा परीक्षा तथा अपेक्षित सावधानी

अंतरणकर्ता बैंक के संबंध में लेखा परीक्षा तथा अपेक्षित सावधानी विलय की प्रभावी तिथि से तत्काल पहले दिन कारोबार की समाप्ति के समय की वित्तीय स्थिति के संदर्भ में किया जाना चाहिए । इस प्रयोजन के लिए अंतरिती बैंक द्वारा डीआईसीजीसी की सहमति से स्वतंत्र लेखा परीक्षकों (चार्टर्ड अकाउंटेंटों की नियुक्ति की जाए ।

2.2आस्तियों एवं देयताओं का मूल्यन

अंतरणकर्ता बैंक की आस्तियों एवं देयताओं का मूल्यन अनुबंध II में दिए गए दिशानिर्देशों के अनुसार होना चाहिए । आस्तियों को दो श्रेणियों में समूहबद्ध किया जा सकता है अर्थात् तरल या तुरंत वसूली योग्य आस्तियां (इसके बाद आगे उन्हें "तुरंत वसूली योग्य आस्तियां" कहा जाएगा) तथा तुरंत वसूली योग्य न होने वाली आस्तियां या अशोध्य तथा संदिग्ध आस्तियां (इसके बाद आगे उन्हें "तुरंत वसूली योग्य न होने वाली आस्तियां " कहा जाएगा ) । "तुरंत वसूली योग्य आस्तियां" वे आस्तियां हैं जिन्हें वसूली योग्य माना जाता है और उनका अच्छा खासा बाजार मूल्य होता है और "तुरंत वसूली योग्य न होने वाली आस्तियां " वे आस्तियां हैं जिनका अच्छा बाजार मूल्य नहीं होता ।

2.3 जमा राशि कवरेज अनुपात

2.3.1 विलय की योजना के अंतर्गत अंतरणकर्ता बैंक की जमाराशि का अनुपात दिया जाना चाहिए जिसका भुगतान अंतरिती बैंक द्वारा अंतरणकर्ता बैंक की "तुरंत वसूली योग्य आस्तियों" तथा अपने अंशदान से किया जाएगा जिसे इसके बाद आगे "जमाराशि कवरेज अनुपात" के रूप में उल्लिखित किया जाएगा । जमाराशि कवरेज अनुपात 65% से कम नहीं होना चाहिए। उच्चतर जमाराशि कवरेज अनुपात का आग्रह किया जाए जो भारतीय रिज़र्व बैंक के मूल्यांकन पर आधारित होगा ।

2.3.2 "जमाराशि कवरेज अनुपात" की गणना निम्नलिखित प्रकार से की जाए :

(क) "निवल तुरंत वसूली योग्य आस्ति" का निर्धारण करने के लिए अधिमानित तथा जमानती ऋणदाताओं को देय राशि को  "तुरंत वसूली योग्य आस्तियों " में से घटा देना चाहिए । इसी प्रकार "निवल बाह्य देयताओं" की गणना करने के लिए अधिमानित तथा जमानती ऋणदाताओं को देय राशि को कुल बाह्य देयताओं में से घटा देना चाहिए ।

(ख) "निवल तुरंत वसूली योग्य आस्तियों" तथा अंतरिती बैंक द्वारा किए जाने वाले अंशदान का योग "निवल बाह्य देयताओं" की चुकौती के लिए जमाकर्ताओं एवं गैर-जमानती ऋणदाताओं के बीच वितरण के लिए उपलब्ध होगा ।

(ग) "निवल वसूली योग्य आस्तियों" (जैसे X) तथा अंतरिती बैंक द्वारा किए जाने वाले अंशदान की राशि (जैसे X) के योग तथा "बाह्य देयताओं की निवल राशि" (जैसेर् ैं) के बीच अनुपात को "जमाराशि कवरेज अनुपात" ड(जैसे X + Y) कहा जाएगा ।

2.3.3 "निवल बाह्य देयताओं " तथा "निवल तुरंत वसूली योग्य आस्तियों " के अंतर जिसे आगे "अनकवर्ड अंतर" कहा जाएगा , को अंतरिती बैंक द्वारा किए जाने वाले अंशदान, डीआईसीजीसी से किए जाने वाले दावे, तथा बड़े जमाकर्ताओं द्वारा किए जाने वाले त्याग से पूरा किया जाएगा ।

2.4 डीआईसीजीसी से दावा   

डीआसीजीसी जमाकर्ताओं को डीआईसीजीसी एक्ट, 1961 की धारा 16 (2) के अंतर्गत निर्धारित सीमा तक और निर्धारित विधि से भुगतान करेगा ।

2.5 जमाराशि की सुरक्षा

अंतरिती बैंक अंतरणकर्ता बैंक के प्रत्येक जमाकर्ता एवं गैर-जमानती ऋणदाता को उसकी जमाराशि की मात्रा पर विचार किए बग़ैर जमाराशि कवरेज अनुपात (अर्थात् आनुपातिक भुगतान ) के अनुसार भुगतान करेगा । अंतरिती बैंक द्वारा जमाकर्ताओं एवं गैर-जमानती ऋणदाताओं को अपनुपातिक भुगतान के बाद बीमित जमाकर्ताओं को डीआईसीजीसी से दावा की राशि प्राप्त होते ही डीआईसीजीसी एक्ट, 1961 की धारा 16(2) के अंतर्गत निर्धारित सीमा तक और निर्धारित विधि से दावा की राशि का भुगतान किया जाएगा । इसका तात्पर्य है कि एक लाख रुपये तक बकाया राशि वाले सभी जमाकर्ताओं को "निवल तुरंत वसूली योग्य आस्ति ", अंतरिती बैंक के अंशदान से पूरा भुगतान किया जाएगा जबकि एक लाख रुपये से अधिक जमाराशि वाले जमाकर्ताओं को एक लाख रुपये की सीमा तक या जमाराशि कवरेज अनुपात के अनुसार, इनमें से जो राशि अधिक हो, भुगतान किया जाएगा ।

2.6 "तुरंत वसूली योग्य न होने वाली आस्तियां " से वसूलियों को बाँटना

2.6.1 निक्षेप बीमा और प्रत्यय गारंटी निगम अधिनियम, 1961 तथा निक्षेप बीमा ओर प्रत्यय गारंटी निगम सामान्य विनियम, 1961 के उपबंधों के अनुसार अंतरिती बैंक वसूलियों से निगम द्वारा भुगतान की गई राशि को ऐसी वसझिलयों के संबंध में व्यय का प्रावधान करने के बाद चुकता करेगा यद्यपि निगम तुरंत वसूली योग्य न होने वाली आस्तियों की वसूली के समायोजन को प्राथमिकता देता है फिर भी वह अंतरिती बैंक द्वारा किए जाने वाले वित्तीय अंशदान तथा जमाकर्ताओं के व्यापक हितों को ध्यान में रखते हुए व्यय की निवल "तुरंत वसूली योग्य न होने वाली आस्तियों" की वसूलियों को अन्य स्टेहोल्डरों के साथ बाँटने पर विचार कर सकता है।

2.6.2 "तुरंत वसूली योग्य न होने वाली आस्तियों "को

(i) डीआईसीजीसी द्वारा भुगतान किए गए दावों,
(ii) अंतरिती बैंक द्वारा किए गए अंशदान,
(ii)जमाकर्ताओं तथा अन्य ऋणदाताओं के खातों में बकाया शेष तथा
(iv)शेयर पूँजी के संबंध में "वसूली खाता" में धारित देयताओं की चुकौती के प्रयोजन से "तुरंत वसूली योग्य न होने वाली आस्तियों " को "वसूली खाता" में रखा जाएगा ।

2.7 विवेकपूर्ण मानदंडों का अनुपालन:

विलय के बाद अंतरिती बैंक को निम्नलिखित मापदंडों का अनुपालन करना चाहिए:-

(i) अंतरिती बैंक को निर्धारित न्यूनतम सी आर ए आर का अनुपालन करना चाहिए।

(ii) निवल एन पी ए को सामान्य तौर पर 10% की सीमा के भीतर रहना चाहिए। तथापि, जिन मामलों में समेकित आधार पर सी आर ए आर निर्धारित न्यूनतम सी आर ए आर से काफी अधिक रहता है वहाँ इस आधार पर उक्त सीमा में कुछ शिथिलता दी जाए।

(iii) विलय के बाद अंतरिती बैंक के परिचालन को लाभप्रद होना चाहिए।

(iv) अंतरिती बैंक को इस स्थिति में होना चाहिए कि वह समेकित आधार पर सी आर आर /एस एलआर का अनुपालन कर सके।


अनुबंध II

विलय के मामले में संपत्ति और आस्तियों के मूल्यन संबंधी दिशानिर्देश

डीआईसीजीसी की सहमति से अंतरिती बैंक द्वारा नियुक्त स्वतंत्र लेखापरीक्षकों को संपत्ति तथा आस्तियों का मूल्यन करना चाहिए और निम्नलिखित प्रावधानों के अनुसार अंतरणकर्ता बैंक की देयताओं को परिगणित करना चाहिए ।

1. नकद तथा बैंक में शेष  

जब तक उस बैंक द्वारा जमाराशि को चुकता करने के संबंध में कोई पर्याप्त संदेह न हो जिसमें ऐसे शेष रखे हुए हों तब तक नकदी तथा बैंक शेष की परिगणना उनके वही मूल्य के आधार पर किया जाए । संदेह की स्थिति में संबंधित बैंक की वित्तीय स्थिति तथा ऐसे मूल्यांकन के लिए प्रासंगिक तथ्यों एवं परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए जमाराशियों के वसूली योग्य मूल्य को सुनिश्चित किया जाए तथा उसकी परिगणना की जाए ।

2.निवेश

i. सरकारी प्रतिभूतियों सहित निवेशों का मूल्यन विलय की तारीख से ठीक पहले दिन की प्रभावी बाजार दरों पर अथवा निवेश संबंधी दिशानिर्देशों के अंतर्गत भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित दर पर किया जाएगा बशर्ते केंद्र सरकार की लघु बचत योजना के अंतर्गत जारी डाकघर प्रमाणपत्र, राजकोष बचत जमा प्रमाणपत्र जैसी केंद्र सरकार की प्रतिभूतियों का मूल्यन विलय की तारीख को उनके अंकित मूल्य अथवा वसूली योग्य मूल्य, इनमें से जो भी अधिक हो, पर किया जाए ।

ii.जहां जमीदारी उन्मूलन बांड जैसी किसी सरकारी प्रतिभूति अथवा इसी प्रकार की अन्य प्रतिभूति जिसके संबंध में मूलधन किस्तों में देय हो, के बाजार मूल्य का आकलन नहीं किया जा सकता हो अथवा उसे उसका उचित मूल्य प्रदर्शित करने वाला न समझा जाता हो अथवा उसे अन्यथा यथोचित न समझा जाता हो, वहां प्रतिभूति का मूल्यन ऐसी राशि पर किया जाएगा जिसे भुगतान के लिए शेष मूलघन तथा ब्याज की किस्तों, जिस अवधि के दौरान ऐसी किस्तें देय हों, सरकार द्वारा जारी किसी प्रतिभूति के प्रतिफल जिससे प्रतिभूति संबंधित है और जिसकी परिपक्वता अवधि समान हो अथवा लगभग समान हो और अन्य संबंधित कारकों के संबंध में औचित्यपूर्ण माना जाए ।

iii. जहां किसी प्रतिभूति शेयर, डिबेंचर, बांड या अन्य निवेश का बाजार मूल्य असामान्य कारकों द्वारा प्रभावित होने के कारण औचित्यपूर्ण नहीं समझा जाता है वहां निवेश का मूल्यन भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा अनुमोदित मूल्यन संबंधी मौजूदा दिशानिर्देशों के अनुसार किया जाए ।

iv.जहां किसी प्रतिभूति, शेयर, डिबेंचर, बांड या अन्य निवेश का बाजार मूल्य का आकलन न किया जा सकता हो वहां केवल ऐसे मूल्य, यदि कोई, को हिसाब में लिया जाएगा जो जारीकर्ता संस्था की वित्तीय स्थिति, पूर्ववर्ती पांच वर्ष के दौरान उसके द्वारा भुगतान किए गए लाभांशों तथा अन्य संबंधित कारकों के संबंध में औचित्यपूर्ण हों और विलय की तारीख से कथित मूल्यन पर कोई सवाल न तो अंतरणकर्ता बैंक उठाएगा और न ही अंतरिती बैंक ।

3. ऋण एवं अगिम  

i) जहां मौज़ूदा स्थिति (going concern approach) दृष्टिकोण अपनाया जाता है जैसा कि दो सुदृढ बैंकों के बीच विलय के मामले में, वहाँ खरीदी / भुनाई गई हुंडियों सहित ऋण एवं अग्रिमों आदि का मूल्यन रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित विवूकपूर्ण मानदंडों के अनुसार किया जाए जो दोनों बैंकों के लिए न्यायसंगत और निष्पक्ष होगा जैसा कि सामान्यत: उनके तुलन पत्रों में प्रदर्शित होता है।

ii)जहां व्यतीत स्थिति (gone concern approach) दृष्टिकोण अपनाया जाता है जैसा कि बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 (सहकारी समितियों पर यथालागू ) की धारा 35क के अंतर्गत जारी दिनेशों के अंतर्गत कार्यरत बैंकों के मामले में अथवा ऐसे प्रस्तावों के मामले में जिनमें शेयरधारकों तथा /अथवा जमाकर्ताओं द्वारा त्याग शामिल हो वहाँ खरीदी तथा चुनाई गई हुंडियों सहित अग्रिमों, बही ऋणों तथा फुटकर आस्थियों की संवीक्षा लेखा परीक्षक द्वारा की जाएगी और ऐसी आस्तियों तथा उनके हिस्सों को दो श्रेणियों अर्थात् ’शोध्य एवं तुरंत वसूली योग्य माने जाने वाले अग्रिम’ (संक्षेप में "तुरंत वसूली योग्य आस्तियों" के रूप में उल्लिखित") तथा ’तुरंत वसूली योग्य न माने जाने वाले एवं /अथवा अशोध्य या वसूली की दृष्टि से संदिग्ध’ (संक्षेप में "तुरंत वसूली योग्य न होने वाली आस्तियों" के रूप में उल्लिखित") में वर्गीकृत किया जाएगा ।

4. फर्नीचर एवं फिक्सचर

फर्नीचर एवं फिक्सचर, कंप्यूटर तथा अन्य संबंधित हार्डवेयर एवं पेरिफेरल्स आदि, स्टेशनरी स्टॉक तथा अन्य आस्तियों, यदि कोई, का मूल्यन बही मूल्य वसूलीयोग्य मूल्य, इनमें से जिसे भी औचित्यपूर्ण माना जाए और जो भी कम हो के अनुसार घटे हुए मूल्य के आधार पर किया जाए ।

5. परिसर और अचल संपत्ति 

दावों को पूरा करने की प्रक्रिया में अधिग्रहित परिसर तथा अन्य सभी अचल संपत्ति तथा अन्य आस्तियों का मूल्यन उनके बाजार मूल्य के आधार पर किया जाए ।

6.देयताएं

इस योजना के प्रयोजन के लिए देयताओं में सभी आकस्मिक देयताएं शामिल होंगी जो अंतरिती बैंक से तर्कत: अपेक्षित है या उसके लिए अनिवार्य है कि विलय की कथित तारीख के बाद पूरा करे ।


अनुबंध III

विलय के मामले में अंतरिती बैंकों को आर्थिक सहायता

रिज़र्व बैंक विलय के मामले में अंतरिती बैंक को निम्ललिखित अतिरिक्त आर्थिक सहायता देने पर विचार कर सकता है ।

i) अंतरिती बैंक को अनुमति दी जाए कि वह अंतरणकर्ता बैंक की घाटे में चलने वाली शाखाओं (पिछले तीन वर्ष के लिए निवल हानि ) को बंद कर सके । अंतरिती बैंक को, यदि आवश्यक हो तो अंतरिती बैंक के विस्तारित परिचालन क्षेत्र (अर्थात् अंतरणकर्ता तथा अंतरिती बैंक का सम्मिलित परिचालन क्षेत्र ) में नई शाखाएं खोलने के लिए इन शाखा लाइसेंसों का इस्तेमाल करने की अनुमति दी जाए ।  इसी प्रकार अंतरिती बैंक के विस्तारित परिचालन क्षेत्र के भीतर अंतरणकर्ता बैंक की शाखाओं के स्थानांतरण /स्थान-परिवर्तन की अनुमति दी जाए बशर्ते मौजूदा ग्राहकों को अंतरणकर्ता /अंतरिती बैंक की मौजूदा /परिवर्तित शाखाओं के माध्यम से बैंकिंग सुविधाएं मिल रही हों ।

ii) अंतरिती बैंक के लिए जहां सतत आधार पर सीआरएआर का उच्च स्तर 12% बनाए रखना अनिवार्य हो वहां प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी I आदि जैसी सुविधाएं बनाए रखने की अनुमति दी जाए बशर्ते वह 9% सीआरएआर का बेंचमार्क बनाए रखता हो ।

iii) विलय की प्रभावी तारीख से छ: महीने के लिए तुरंत वसूली योग्य ऋणों एवं अग्रिमों को वसूली के प्रयोजन से अंतरिती बैंक की बहियों में "मानक आस्तियों" के रूप में माना जाएगा धक्येंकि अंतरिती बैंक जमाकर्ताओं की देयताओं को पूरा करने के लिए इन आस्तियों के विलय के बाद तत्काल पूरा मूल्य देता है । तथापि, इस अवधि के दौरान ऐसी आस्तियों पर उपचित आधार पर किसी आय का निर्धारण नहीं किया जाएगा । मौजूदा आस्ति वर्गीकरण मानदंड उसके बाद लागू होगा ।

iv) ऐसे शहरी सहकारी बैंकों के मामले में 50 करोड़ रूपये की न्यूनतम प्रवेश बिंदु पूंजी के लिए जोर न दिया जाए जो संबंधित राज्य के बाहर पंजीकृत किसी अन्य शहरी सहकारी बैंक का अधिग्रहण करने के कारण बहु-राज्यीय हो गया हो क्योंकि कुछ शहरी सहकारी बैंक प्रमुख रूप से किसी खास समुदाय की जरूरतों को पूरा करते हैं ।

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