शहरी सहकारी बैंकों के विलय /समामेलन के लिए दिशानिर्देश
आरबीआई /2008-09/365 मुख्य कार्यपालक अधिकारी
महोदय /महोदया शहरी सहकारी बैंकों के विलय /समामेलन के लिए दिशानिर्देश कृपया उपर्युक्त विषय पर 02 फरवरी 2005 का हमारा परिपत्र पीसीबी.परि.36/09.16.00 /2004-05 देखें । मौजूदा दिशानिर्देशों में अन्य बातों के साथ यह भी प्रावधान किया गया है कि जिन मामलों में अधिग्रहित बैंक का नेटवर्थ ऋणात्मक है वहाँ अधिग्राही बैंक को स्वयं अथवा राज्य सरकार से अपफ्रन्ट वित्तीय सहायता लेकर अधिग्रहित बैंक की जमाराश् िकी सुरक्षा करनी चाहिए । 2. तथापि, 31 मार्च 2007 की स्थिति के अनुसार ऋणात्मक नेटवर्थ वाले शहरी सहकारी बैंकों से संबंधित लंबे समय से चले आ रहे मामलों में यह निर्णय लिया गया है कि रिज़र्व बैंक समामेलन की योजना पर भी विचार कर सकता है, जिसमें बीमा और प्रत्यय गारंटी निगम अधिनियम, 1961 की धारा 16(2) के अंतर्गत जमाकर्ताओं को भुगतान का प्रावधान किया गया है अर्थात, अंतरिती बैंक द्वारा वित्तीय अंशदान तथा बड़े जमाकर्ताओं द्वारा त्याग । लंबे समय से चले आ रहे ऐसे मामलों में शहरी सहकारी बैंकों के विलय के लिए विस्तृत दिशानिर्देश अनुबंध I में दिए गए हैं । इसके अतिरिक्त, अंतरणकर्ता बैंक की आस्तियों तथा देयताओं के मूल्यन के लिए विस्तृत दिशानिर्देश अनुबंध II में दिए गए हैं । अंतरिती बैंक को दी जा सकने वाली आर्थिक सहायताओं को अनुबंध III में सूचीबद्ध किया गया है । 4. कृपया नए दिशानिर्देश अपने बैंक के निदेशक मंडल के समक्ष सूचनार्थ प्रस्तुत करें । 5. कृपया प्राप्ति-सूचना भारतीय रिज़र्व बैंक के संबंधित क्षेत्रीय कार्यालय को दें ।
भवदीय (ए.के. खौंड) संलग्नक: यथोपरि अनुबंध I निक्षेप बीमा और प्रत्यय गारंटी निगम की सहायता वाले शहरी सहकारी डीआईसीजीसी की सहायता से शहरी सहकारी बैंकों (ऋणात्मक नेटवर्थ वाले) के विलय की योजना की मंजूरी पर विचार करने के लिए निम्नलिखित दिशानिर्देश निर्धारित किए गए हैं । 1. पात्रता : 1.2 विलय किए जाने वाले शहरी सहकारी बैंक को ऐसे राजय में पंजीकृत होना चाहिए जिसने भारतीय रिज़र्व बैंक के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर कर दिए हैं अथवा उसे बहु-राज्यीय सहकारी समितियां अधिनियम, 2002 के अंतर्गत पंजीकृत होना चाहिए जहां निबंधक, सहकारी समितियां संबंधित राज्य के सहकारी समितियां अधिनियम के अंतर्गत जनहित में विलय के आदेश देता है अथवा केंद्रीय निबंधक, सहकारी समितियां बहु-राज्यीय सहकारी समितियां अधिनियम, 2002 की धारा 18 के अंतर्गत समामेलन की योजना तैयार करता है । 2.आवश्यक शर्तें : अंतरणकर्ता बैंक के संबंध में लेखा परीक्षा तथा अपेक्षित सावधानी विलय की प्रभावी तिथि से तत्काल पहले दिन कारोबार की समाप्ति के समय की वित्तीय स्थिति के संदर्भ में किया जाना चाहिए । इस प्रयोजन के लिए अंतरिती बैंक द्वारा डीआईसीजीसी की सहमति से स्वतंत्र लेखा परीक्षकों (चार्टर्ड अकाउंटेंटों की नियुक्ति की जाए । अंतरणकर्ता बैंक की आस्तियों एवं देयताओं का मूल्यन अनुबंध II में दिए गए दिशानिर्देशों के अनुसार होना चाहिए । आस्तियों को दो श्रेणियों में समूहबद्ध किया जा सकता है अर्थात् तरल या तुरंत वसूली योग्य आस्तियां (इसके बाद आगे उन्हें "तुरंत वसूली योग्य आस्तियां" कहा जाएगा) तथा तुरंत वसूली योग्य न होने वाली आस्तियां या अशोध्य तथा संदिग्ध आस्तियां (इसके बाद आगे उन्हें "तुरंत वसूली योग्य न होने वाली आस्तियां " कहा जाएगा ) । "तुरंत वसूली योग्य आस्तियां" वे आस्तियां हैं जिन्हें वसूली योग्य माना जाता है और उनका अच्छा खासा बाजार मूल्य होता है और "तुरंत वसूली योग्य न होने वाली आस्तियां " वे आस्तियां हैं जिनका अच्छा बाजार मूल्य नहीं होता । (क) "निवल तुरंत वसूली योग्य आस्ति" का निर्धारण करने के लिए अधिमानित तथा जमानती ऋणदाताओं को देय राशि को "तुरंत वसूली योग्य आस्तियों " में से घटा देना चाहिए । इसी प्रकार "निवल बाह्य देयताओं" की गणना करने के लिए अधिमानित तथा जमानती ऋणदाताओं को देय राशि को कुल बाह्य देयताओं में से घटा देना चाहिए । (ख) "निवल तुरंत वसूली योग्य आस्तियों" तथा अंतरिती बैंक द्वारा किए जाने वाले अंशदान का योग "निवल बाह्य देयताओं" की चुकौती के लिए जमाकर्ताओं एवं गैर-जमानती ऋणदाताओं के बीच वितरण के लिए उपलब्ध होगा । (ग) "निवल वसूली योग्य आस्तियों" (जैसे X) तथा अंतरिती बैंक द्वारा किए जाने वाले अंशदान की राशि (जैसे X) के योग तथा "बाह्य देयताओं की निवल राशि" (जैसेर् ैं) के बीच अनुपात को "जमाराशि कवरेज अनुपात" ड(जैसे X + Y) कहा जाएगा । 2.3.3 "निवल बाह्य देयताओं " तथा "निवल तुरंत वसूली योग्य आस्तियों " के अंतर जिसे आगे "अनकवर्ड अंतर" कहा जाएगा , को अंतरिती बैंक द्वारा किए जाने वाले अंशदान, डीआईसीजीसी से किए जाने वाले दावे, तथा बड़े जमाकर्ताओं द्वारा किए जाने वाले त्याग से पूरा किया जाएगा । 2.4 डीआईसीजीसी से दावा डीआसीजीसी जमाकर्ताओं को डीआईसीजीसी एक्ट, 1961 की धारा 16 (2) के अंतर्गत निर्धारित सीमा तक और निर्धारित विधि से भुगतान करेगा । 2.5 जमाराशि की सुरक्षा अंतरिती बैंक अंतरणकर्ता बैंक के प्रत्येक जमाकर्ता एवं गैर-जमानती ऋणदाता को उसकी जमाराशि की मात्रा पर विचार किए बग़ैर जमाराशि कवरेज अनुपात (अर्थात् आनुपातिक भुगतान ) के अनुसार भुगतान करेगा । अंतरिती बैंक द्वारा जमाकर्ताओं एवं गैर-जमानती ऋणदाताओं को अपनुपातिक भुगतान के बाद बीमित जमाकर्ताओं को डीआईसीजीसी से दावा की राशि प्राप्त होते ही डीआईसीजीसी एक्ट, 1961 की धारा 16(2) के अंतर्गत निर्धारित सीमा तक और निर्धारित विधि से दावा की राशि का भुगतान किया जाएगा । इसका तात्पर्य है कि एक लाख रुपये तक बकाया राशि वाले सभी जमाकर्ताओं को "निवल तुरंत वसूली योग्य आस्ति ", अंतरिती बैंक के अंशदान से पूरा भुगतान किया जाएगा जबकि एक लाख रुपये से अधिक जमाराशि वाले जमाकर्ताओं को एक लाख रुपये की सीमा तक या जमाराशि कवरेज अनुपात के अनुसार, इनमें से जो राशि अधिक हो, भुगतान किया जाएगा । 2.6 "तुरंत वसूली योग्य न होने वाली आस्तियां " से वसूलियों को बाँटना 2.6.1 निक्षेप बीमा और प्रत्यय गारंटी निगम अधिनियम, 1961 तथा निक्षेप बीमा ओर प्रत्यय गारंटी निगम सामान्य विनियम, 1961 के उपबंधों के अनुसार अंतरिती बैंक वसूलियों से निगम द्वारा भुगतान की गई राशि को ऐसी वसझिलयों के संबंध में व्यय का प्रावधान करने के बाद चुकता करेगा यद्यपि निगम तुरंत वसूली योग्य न होने वाली आस्तियों की वसूली के समायोजन को प्राथमिकता देता है फिर भी वह अंतरिती बैंक द्वारा किए जाने वाले वित्तीय अंशदान तथा जमाकर्ताओं के व्यापक हितों को ध्यान में रखते हुए व्यय की निवल "तुरंत वसूली योग्य न होने वाली आस्तियों" की वसूलियों को अन्य स्टेहोल्डरों के साथ बाँटने पर विचार कर सकता है। 2.7 विवेकपूर्ण मानदंडों का अनुपालन: विलय के बाद अंतरिती बैंक को निम्नलिखित मापदंडों का अनुपालन करना चाहिए:- अनुबंध II विलय के मामले में संपत्ति और आस्तियों के मूल्यन संबंधी दिशानिर्देश 1. नकद तथा बैंक में शेष जब तक उस बैंक द्वारा जमाराशि को चुकता करने के संबंध में कोई पर्याप्त संदेह न हो जिसमें ऐसे शेष रखे हुए हों तब तक नकदी तथा बैंक शेष की परिगणना उनके वही मूल्य के आधार पर किया जाए । संदेह की स्थिति में संबंधित बैंक की वित्तीय स्थिति तथा ऐसे मूल्यांकन के लिए प्रासंगिक तथ्यों एवं परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए जमाराशियों के वसूली योग्य मूल्य को सुनिश्चित किया जाए तथा उसकी परिगणना की जाए । 2.निवेश ii.जहां जमीदारी उन्मूलन बांड जैसी किसी सरकारी प्रतिभूति अथवा इसी प्रकार की अन्य प्रतिभूति जिसके संबंध में मूलधन किस्तों में देय हो, के बाजार मूल्य का आकलन नहीं किया जा सकता हो अथवा उसे उसका उचित मूल्य प्रदर्शित करने वाला न समझा जाता हो अथवा उसे अन्यथा यथोचित न समझा जाता हो, वहां प्रतिभूति का मूल्यन ऐसी राशि पर किया जाएगा जिसे भुगतान के लिए शेष मूलघन तथा ब्याज की किस्तों, जिस अवधि के दौरान ऐसी किस्तें देय हों, सरकार द्वारा जारी किसी प्रतिभूति के प्रतिफल जिससे प्रतिभूति संबंधित है और जिसकी परिपक्वता अवधि समान हो अथवा लगभग समान हो और अन्य संबंधित कारकों के संबंध में औचित्यपूर्ण माना जाए । iv.जहां किसी प्रतिभूति, शेयर, डिबेंचर, बांड या अन्य निवेश का बाजार मूल्य का आकलन न किया जा सकता हो वहां केवल ऐसे मूल्य, यदि कोई, को हिसाब में लिया जाएगा जो जारीकर्ता संस्था की वित्तीय स्थिति, पूर्ववर्ती पांच वर्ष के दौरान उसके द्वारा भुगतान किए गए लाभांशों तथा अन्य संबंधित कारकों के संबंध में औचित्यपूर्ण हों और विलय की तारीख से कथित मूल्यन पर कोई सवाल न तो अंतरणकर्ता बैंक उठाएगा और न ही अंतरिती बैंक । 3. ऋण एवं अगिम i) जहां मौज़ूदा स्थिति (going concern approach) दृष्टिकोण अपनाया जाता है जैसा कि दो सुदृढ बैंकों के बीच विलय के मामले में, वहाँ खरीदी / भुनाई गई हुंडियों सहित ऋण एवं अग्रिमों आदि का मूल्यन रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित विवूकपूर्ण मानदंडों के अनुसार किया जाए जो दोनों बैंकों के लिए न्यायसंगत और निष्पक्ष होगा जैसा कि सामान्यत: उनके तुलन पत्रों में प्रदर्शित होता है। 4. फर्नीचर एवं फिक्सचर फर्नीचर एवं फिक्सचर, कंप्यूटर तथा अन्य संबंधित हार्डवेयर एवं पेरिफेरल्स आदि, स्टेशनरी स्टॉक तथा अन्य आस्तियों, यदि कोई, का मूल्यन बही मूल्य वसूलीयोग्य मूल्य, इनमें से जिसे भी औचित्यपूर्ण माना जाए और जो भी कम हो के अनुसार घटे हुए मूल्य के आधार पर किया जाए । 5. परिसर और अचल संपत्ति दावों को पूरा करने की प्रक्रिया में अधिग्रहित परिसर तथा अन्य सभी अचल संपत्ति तथा अन्य आस्तियों का मूल्यन उनके बाजार मूल्य के आधार पर किया जाए । 6.देयताएं इस योजना के प्रयोजन के लिए देयताओं में सभी आकस्मिक देयताएं शामिल होंगी जो अंतरिती बैंक से तर्कत: अपेक्षित है या उसके लिए अनिवार्य है कि विलय की कथित तारीख के बाद पूरा करे । विलय के मामले में अंतरिती बैंकों को आर्थिक सहायता रिज़र्व बैंक विलय के मामले में अंतरिती बैंक को निम्ललिखित अतिरिक्त आर्थिक सहायता देने पर विचार कर सकता है । ii) अंतरिती बैंक के लिए जहां सतत आधार पर सीआरएआर का उच्च स्तर 12% बनाए रखना अनिवार्य हो वहां प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी I आदि जैसी सुविधाएं बनाए रखने की अनुमति दी जाए बशर्ते वह 9% सीआरएआर का बेंचमार्क बनाए रखता हो । iv) ऐसे शहरी सहकारी बैंकों के मामले में 50 करोड़ रूपये की न्यूनतम प्रवेश बिंदु पूंजी के लिए जोर न दिया जाए जो संबंधित राज्य के बाहर पंजीकृत किसी अन्य शहरी सहकारी बैंक का अधिग्रहण करने के कारण बहु-राज्यीय हो गया हो क्योंकि कुछ शहरी सहकारी बैंक प्रमुख रूप से किसी खास समुदाय की जरूरतों को पूरा करते हैं । |
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