फोरेंसिक जांच के परिणाम – धोखाधड़ियों की रोकथाम हेतु दिशानिर्देश
आरबीआई/2010-11/ 555 31 मई 2011 अध्यक्ष/मुख्य कार्यपालक अधिकारीसभी अनूसूचित वाणिज्य बैंक (क्षे.ग्रा.बैंको को छोड़कर) एवं प्रिय महोदय, फोरेंसिक जांच के परिणाम – धोखाधड़ियों की रोकथाम हेतु दिशानिर्देश हाल ही में, हमने पहचाने गए कतिपय बैंकों में अधिक मूल्य की धोखाधड़ियों के घटित होने या धोखाधड़ियों की संख्या में तीव्र वृद्धि होने के कारण उनकी फोरेंसिक जांचें की थी । उक्त जाँचें मुख्य रूप से नीति परक कमियाँ , यदि कोई हों , तथा नियंत्रणों की पर्याप्तता की पहचान करने हेतु की गई थी । जाँचों के दौरान , प्रणालीगत कारकों की भी पहचान करने की कोशिश की गई । 2. जाँचों के परिणामों के आधार पर , धोखाधड़ियों का पता लगाने , रिपोर्टिंग तथा निगरानी के साथ–साथ परिचालित निगरानी / पर्यवेक्षण प्रक्रिया के लिए लागू नीति और परिचालनगत ढांचे का पता लगाने हेतु समस्त बैंकों में अतिरिक्त अध्ययन किया गया है ताकि धोखाधड़ियों की रोकथाम हो । उक्त अध्ययन से स्पष्ट हुआ है कि बैंकों के पास हालांकि इस संबंध में कतिपय नीतियाँ व प्रक्रियाएँ है किन्तु धोखाधड़ी की विशिष्ट घटनाओं पर उचित रूप से निगरानी सुनिश्चित करने हेतु वे सुसंरचित और प्रणालीबद्ध नहीं है । इसके अतिरिक्त धोखाधड़ी की विशेषताओं वाले ऐसे लेन-देनों को आँकने तथा उनकी '' सक्षम प्राधिकारी '' को रिपोर्टिंग करने में निरंतरता का अभाव है । अत: बैंकों को सूचित किया जाता है कि वे निम्नलिखित कतिपय निर्देशात्मक दिशानिर्देशों को ध्यान में रखते हुए अपनी नीति में उचित रूप से संशोधन करें तथा इस मामले में परिचालनगत ढाँचे को सरल व कारगर बनाएँ : 3.निम्नलिखित क्षेत्रों में सूचित की गई धोखाधड़ियों की पुनरावृति या वे बढ़ती हुई प्रवृति दर्शाती है: * स्टॉकों के दृष्टिबंधक पर ऋण / अग्रिम उपर्युक्त सूची केवल उदहारणस्वरूप है न कि परिपूर्ण । बैंकों से अपेक्षित है कि वे उपर्युक्त क्षेत्रों में तथा अन्य ऐसे क्षेत्रों में जहां धोखाधड़ियों की विशिष्ट रूप से जमावट है , करीब से निगरानी तथा सख्त नियंत्रणों को लागू करें । इस संबंध में, उपर्युक्त क्षेत्र में धोखाधड़ियों के संबंध में पूर्व में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किए गए परिपत्रों की चुनिन्दा सूची अनुबंध में दी गई है । 4. धोखाधड़ियों की खोज –खबर रखने तथा उनसे निपटने हेतु परिचालन ढांचा निम्नलिखित तीन माध्यमों के अनुसरण में संरचित किया जाना चाहिए : (क) धोखाधड़ियों का पता लगाना तथा रिपोर्टिंग पता लगाना व रिपोर्टिंग : बैंकों के पास निर्धारित प्रक्रियायों तथा मानदंडों का एक सेट होना चाहिए जिसके द्वारा धोखाधड़ी होने की पुष्टि करने हेतु गंभीर अनियमितताओं वाली घटनाओं या लेन-देनों का विश्लेषण व मूल्यांकन किया जाता है । इस प्रयोजन हेतु , बैंक भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किए दिशानिर्देशों के आधार पर ' धोखाधड़ी ' को परिभाषित कर सकते हैं। ऐसा करते समय , वे 'कार्य निर्वाह ' में लापरवाही की वजह से हुई किसी घटना को बैंक स्टाफ द्वारा ( उधारकर्ताओं के साथ बैंक को धोखा देने के उद्देश्य से ) '' साँठगाँठ'' से स्पष्टत: अलग कर पहचानें । इसके अतिरिक्त , ' इरादतन चूक ' के दृष्टांतो से निपटते समय सावधानी बरती जाए । इस संबंध में , निम्नलिखित में से किसी एक घटना को ध्यान में लाया जाता है तो यह माना जाएगा कि इरादतन चूक हुई है : (क) यूनिट ने उधारकर्ता के प्रति उसके भुगतान / चुकौती के दायित्वों को पूरा करने में चूक की है जबकि उसके पास उक्त दायित्वों को निभाने की क्षमता है । (ख) यूनिट ने उधारकर्ता के प्रति उसके भुगतान /चुकौती के दायित्वों को निभाने में चूक की है तथा उधारकर्ता से प्राप्त उस विशिष्ट उद्देश्यों हेतु नहीं उपयोग किया जिसके लिए वित्त प्राप्त किया गया था बल्कि अन्य उद्देश्यों हेतु निधियों को डाइवर्ट किया गया है । (ग) यूनिट ने उधारदाता के प्रति उसके भुगतान /चुकौती के दायित्वों को निभाने में चूक की है तथा निधियों को बेईमानी से निकाला है ताकि निधियों को उस विशिष्ट उद्देश्य हेतु उपयोग नहीं किया गया , जिसके लिए वित्त प्राप्त किया था , न ही यूनिट के पास अन्य आस्तियों के रूप में निधियाँ उपलब्ध है । (घ) उसके भुगतान /चुकौती के दायित्वों को निभाने में चूक की है तथा बैंक/उधारदाता को सूचित किए बिना अवधि ऋण को प्राप्त करने के उद्देश्य से उसके या यूनिट द्वारा दी गई चल स्थायी आस्तियों या अचल संपत्ति को भी बेचा गया या हटाया गया । इसके अतिरिक्त , बैंक धोखाधड़ी करने के 'उद्देश्य' की भी जांच करें , इस बात पर ध्यान दिये बिना कि वास्तविक रूप से क्षति हुई है या नहीं । इन मुख्य तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, अनुचित/ अन्यायपूर्ण लाभ या फायदा प्राप्त करने हेतु साँठ-गाँठ से किए गए किसी भी कार्य को धोखाधड़ी पहचान के ऐसे प्रोटोकॉल का पालन करते हुए , जब भी किसी धोखाधड़ी का पता लगाया जाता है तब एक रिपोर्ट तैयार की जानी चाहिए तथा ''सक्षम प्राधिकारी'' को प्रस्तुत की जानी चाहिए । बैंकों की समग्र नीति तथा परिचालन ढाँचे के हिस्से के रूप में उन्हें चाहिए कि वे उस सक्षम प्राधिकारी की पहचान व नियुक्ति करें जिसको रिपोर्ट प्रस्तुत की जानी हैं। धोखाधड़ी रिपोर्ट एक विश्लेषित मूल्यांकन हो ,जो स्पष्टत: धोखाधड़ी के कारणों को प्रकट करे तथा यह पहचान करें कि धोखाधड़ी 'प्रणाली की विफलता ' या ' मानव विफलता ' के कारण घटित हुई है । दोषनिवारक कार्रवाई : धोखाधड़ी के माध्यम से बेईमानी से निकाली गई राशि की वसूली धोखाधड़ी में एक महत्वपूर्ण दोषनिवारक कदम है । अक्सर , घटनाओं / लेनदेनों की जांच तथा पूछताछ के दौरान , धोखाधड़ी की राशि के प्रवाह को पता लगाने की आवश्यकता को उचित प्राथमिकता नहीं मिलती या इस दिशा में की गई कार्रवाई से कोई ठोस परिणाम नहीं निकलता । यह प्रमुख रूप से निम्नलिखित के कारण हो सकता है : -
घटनाओं या लेन –देनों की एक संरचित छानबीन/ जांच से इस बात का एक त्वरित निष्कर्ष निकलेगा कि क्या धोखाधड़ी की गई है तथा बैंक की निधियों को बेईमानी से निकाला गया है । इस प्रकार , यह कार्य दोषनिवारक कार्य हेतु पहला महत्वपूर्ण कदम है जिसके द्वारा पुलिस शिकायतों को शीघ्रता से दर्ज करना , खातों को अवरूद्ध करना / जब्त करना तथा यथासमय अवरूद्ध / जब्त खातों से निधियों को बचाना संभव हो पाएगा । इसके अतिरिक्त , जब लेन-देनों के एक समूह को स्पष्ट रूप से धोखाधड़ी पूर्ण पाया जाता है , तब संबन्धित दस्तावेजों को जब्त करने तथा कब्जा प्राप्त करने , पहचान किए / संदेहास्पद कर्मचारियों को निलंबन आदेश / छुट्टी पर जाने का आदेश जारी की अनिवार्यता संबंधी कार्य सरल हो जाएगा जिससे उन्हें साक्ष्यों को नष्ट करने / हेर फेर करने या जाँचों में अवरोध डालने से रोका जा सकेगा । इस संबंध में , हमारे परिपत्र बैंपर्यवि.केका.धो.नि.क.बी सी संख्या 7 /23.04.001/2010-11 दिनांक 16 सितंबर, 2009 की ओर ध्यान आकृष्ट किया जाता है जिसमें यह सूचित किया गया है कि उन्हें '' धोखाधड़ी रोकथाम तथा प्रबंधन कार्य '' पर एकमात्र फोकस देना चाहिए ताकि अन्य बातों के साथ – साथ धोखाधड़ी मामलों में प्रभावी जांच तथा उचित विनियामक व विधि प्रवर्तन एजेंसियों को धोखाधड़ी के मामलों की तुरंत व सही रिपोर्टिंग संभव हो सके । निवारक व दंडात्मक कार्रवाई : नैदानिक विश्लेषण के अनुसार , ' प्रणालीगत चूक ' के समाधान के लिए आवश्यक निवारक कार्रवाई तथा ' मानव चूक ' के समाधान के लिए आवश्यक कार्रवाई तथा दंडात्मक कार्रवाई तत्काल शुरू कर शीघ्र पूर्ण की जानी चाहिए । सामान्य रूप में, बैंकों में प्रणाली द्वारा नियंत्रित वर्तमान माहौल में, जहां भी लेन देनों में '' नियंत्रणों '' का उलंघन होता है यह उलंघन ''एंड ऑफ डे एक्सेप्शन रिपोर्ट '' में दर्शाया जाता है। तदनुसार , ऐसी सभी अपवादात्मक रिपोर्टों का पदनामित अधिकारी द्वारा अवलोकन किया जाना चाहिए । तथापि , कतिपय मामलों में यह पाया गया है कि यह प्रक्रिया प्राय: विधिवत रूप से कार्यान्वित नहीं की जाती जिससे कमजोर आंतरिक नियंत्रण की व्यवस्था प्रतिबिम्बित होती है । अत: बैंकों को सुनिश्चित करना चाहिए कि वे इस प्रक्रिया में आवश्यक सुधार लाए तथा यह विनिर्दिष्ट करें कि किन- किन स्तरों / प्राधिकारियों को अपवादात्मक रिपोर्टें अनिवार्य रूप से प्रस्तुत की जाए व प्राधिकारी अपवाद रिपोर्टों से निपटने हेतु क्या कार्रवाई करें। अपवादात्मक रिपोर्टों को किस प्रकार से बनाया जाए , इन रिपोर्टों में निहित लेन- देनों की जांच/ छन बीन कैसे की जाए तथा इन रिपोर्टों को उलंघनों हेतु आवश्यक प्राधिकरण के लिए उच्चतर प्राधिकारियों को कैसे प्रस्तुत किया जाए , इन सबकी बैंक के प्रबंधन/ निदेशक मण्डल द्वारा आवधिक समीक्षा व निगरानी की जाए । 5. उपर्युक्त के अतिरिक्त , बैंको को उनके धोखाधड़ी जोखिम प्रबंधन ढाँचे के भाग के रूप में उनकी मानव संसाधन प्रक्रियाओं तथा आंतरिक निरीक्षण / लेखा परीक्षा प्रक्रियाओं में निम्नलिखित नियंत्रणों तथा हतोत्साहित करने वाले पहलूओं को लागू करने हेतु तुरंत कदम उठाने चाहिए : (क ) डीलिंग रूम व कोषागार के प्रबन्धकों , उच्च मूल्य वाले ग्राहकों के संबंध प्रबन्धकों , विशेषीकृत शाखाओं के प्रमुखों आदि महत्वपूर्ण संवेदनशील पदों के लिए बैंकों को केवल उन्हीं अधिकारियों को चयनित करना चाहिए जो ' उपयुक्त व उचित ' मानदंड को पूरा करते हों । इस उद्देश्य हेतु , बैंकों को महत्वपूर्ण एवं संवेदनशील पदों या प्रचालन क्षेत्रों की एक सूची तैयार करनी चाहिए तथा प्रचालनों के ऐसे पदों /क्षेत्रों के लिए स्टाफ / अधिकारियों की योग्यता को निर्धारित करने हेतु सुपरिभाषित '' उपयुक्त व उचित '' मानदंड बनाना चाहिए । ऐसी तैनातियों की उपयुक्तता की आवधिक समीक्षा की जानी चाहिए । (ख) बैंकों को तुरंत '' स्टाफ रोटेशन '' नीति तथा स्टाफ हेतु '' अनिवार्य अवकाश'' की नीति लागू करनी चाहिए । आंतरिक लेखा परीक्षकों एवं समवर्ती लेखा परीक्षकों से विशेष रूप से यह अपेक्षा की जानी चाहिए कि वे इन नीतियों के क्रियान्वयन की जांच करें और उलंघनों के संबंध में इस बात को ध्यान दिये बिना कि अननुपालन , यदि कोई है , के लिए उचित कारण सूचित करें । रोटेट न किए गए / अवकाश पर न गए अधिकारियों तथा स्टाफ द्वारा लिए गए निर्णय / किए गए लेन – देनों की व्यापक जांच समवर्ती लेखापरीक्षकों सहित आंतरिक लेखापरीक्षकों/ निरीक्षकों द्वारा की जानी चाहिए । तटसंबंधी जांच परिणामों को लेखापरीक्षा / निरीक्षण रिपोर्टों के एक पृथक खंड में प्रलेखित किया जाना चाहिए । (ग) बैंकों को जांच , डाटा विश्लेषण , फोरेंसिक विश्लेषण इत्यादि में रूचि रखने वाले स्टाफ के रूप में पहचाने गए अधिकारियों/ कर्मचारियों का एक डाटाबेस बनाना चाहिए तथा उन्हें जाँचों तथा फोरेंसिक लेखा परीक्षा में उपयुक्त प्रशिक्षण देना चाहिए । धोखाधड़ियों की जांच हेतु , केवल ऐसे ही अधिकारियों / स्टाफ को '' धोखाधड़ी जांच यूनिट / आउटफिट '' के माध्यम से तैनात किया जाना चाहिए । 6. कृपया प्राप्ति-सूचना भेंजे । भवदीय (ए.माडसामी) 2011
2010
2009
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