निधियों का अंतिम उपयोग - निगरानी
आरबीआई/2010-11/368 14 जनवरी 2010 अध्यक्ष/मुख्य कार्यपालक अधिकारी प्रिय महोदय, निधियों का अंतिम उपयोग - निगरानी भारतीय रिज़र्व बैंक ने मौजूदा पर्यवेक्षण के हिस्से के रुप में निधियों का अंतिम उपयोग सुनिश्चित करने के लिए कुछ बैंकों में प्रचलित प्रथाओं के आकलन का कार्य किया था। समीक्षा करने पर यह बात सामने आई कि कुछ मामलों में समुचित सावधानी अपेक्षित स्तर तक बरती नहीं गई थी। पाई गई कमियों में अन्य बातों के साथ-साथ ग्राहकों के चालू/ नकद ऋण खातों में सावधि ऋण संवितरणों को जमा करना और दैनंदिन परिचालनों हेतु उनका उपयोग करना एवं प्रोमोटर का अंशदान ग्रहण करने तथा बैंक की निधियों के अभिनियोजन दोनो के संबंध में मात्र चार्टर्ड एकाउंटेंट के प्रमाणन का सहारा लिया गया था। 2. उपर्युक्त के संदर्भ में यह सूचित किया जाता है कि कृपया पर्यवेक्षण के प्रयोजनार्थ अग्रिमों की मंजूरी के बाद के पर्यवेक्षण और अनुवर्ती कार्रवाई के लिए आपके बैंक में मौजूदा प्रणाली की प्रभावशीलता का मूल्यांकन किया जाए और जहाँ भी आवश्यक समझा जाए इसे सुदृढ बनाया जाए । उदाहरण के रुप में, प्रणालियों और कार्यविधियों में मोटे तौर पर निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं : (i) आवधिक प्रगति रिपोर्टों तथा उधारकर्ताओं के परिचालन/वित्तीय विवरणों की सार्थक संवीक्षा; 3. जैसा कि आप समझेंगे, उधार दी गई निधियों के अंतिम उपयोग की प्रभावी निगरानी किसी बैंक के हित को सुरक्षित करने के लिए निर्णायक एवं महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त, यह उधारकर्ताओं को स्वीकृत ऋण सुविधाओं के दुरुपयोग को रोकने का कार्य करेगी और इस प्रक्रिया में भारतीय बैंकिंग प्रणाली में एक अच्छी ऋण संस्कृति निर्मित करने में सहायक सिद्ध होगी। 4. कृपया पावती भेजें। भवदीय, (डॉ एन कृष्णमोहन) |
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