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आयात बिलों/ दस्तावेजों की प्राप्ति - उदारीकरण

आरबीआइ/2007-08/181
ए पी(डीआइआर सिरीज़)परिपत्र सं.18

नवंबर 07, 2007

सेवा में
सभी श्रेणी-I प्राधिकृत व्यापारी बैंक

महोदया/महोदय,

आयात बिलों/ दस्तावेजों की प्राप्ति - उदारीकरण

प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी I का ध्यान फरवरी 6, 2004 के ए.पी.(डीआइआर सिरीज़) परिपत्र सं.66 के मद i.क. की ओर आकर्षित किया जाता है जिसके अनुसार प्राधिकृत व्यापारियों को उन आयातों के लिए प्रेषण अनुमति दी जाती है, जहां आयातक ने विदेशी आपूर्तिकर्ताओं से सीधे आयात बिल/ दस्तावेज प्राप्त किया है और आयात बिलें का मूल्य 100,000 अमरीकी डॉलर से अधिक नहीं है। इसके अलावा उपर्युक्त परिपत्र के संलग्नक के i.ग. के अनुसार विदेश व्यापार नीति के तहत यथापरिभाषित हैसियतवाले निर्यातकों को आयात के मूल्य पर विचार किए बगैर विदेशी आपूर्तिकर्ताओं से सीधे आयात बिल/ दस्तावेज़ प्राप्त करने की अनुमति है।

2. जेम्स एण्ड ज्वेलरी एक्सपोर्ट प्रोमोशन काउंसिल ने अभिवेदन किया है कि आयात बिल/ दस्तावेजों की सीधे प्राप्ति के लिए गैर-हैसियत प्राप्त निर्यातकों पर लगाए गए प्रतिबंध, जहां मूल्य 100,000 अमरीकी डॉलर से अधिक है, वहां छोटे आयातकों के लिए लेनदेन लागत बढ़ जाती है तथा उन्हेंने रिज़र्व बैंक से अनुरोध किया है कि गैर-हैसियत धारकों द्वारा कच्चे हीरों के आयात के लिए इस शर्त से छूट देने पर विचार किया जाए।

3. अत: यह निर्णय लिया गया है कि एक क्षेत्र विशेष उपाय के रूप में, कच्चे हीरों के आयात के मामले में, आयात बिल/दस्तावेजों की सीधे प्राप्ति की सीमा को 100,000 अमरीकी डॉलर से बढ़ाकर 300,000 अमरीकी डॉलर कर दिया जाए। तदनुसार, प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंकों को 300,000 अमरीकी डॉलर तक के आयात के प्रेषण की अनुमति दी जाती है, जहां कच्चे हीरों के आयातक ने विदेशी आपूर्तिकर्ता से सीधे आयात बिल/ दस्तावेज प्राप्त किया है तथा आयातक आयात के दस्तावेज़ी सबूत प्रेषण के समय प्रस्तुत करता है। प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंक निम्नलिखित शर्तों के अधीन ऐसे लेनदेन कर सकते हैं

(i) आयात प्रचलित विदेशी व्यापार नीति के अधीन होगा।

(ii) लेनदेन उनके वाणिज्यिक निर्णय पर आधारित है और वे लेनदेन की वास्तविकता के संबंध में संतुष्ट हैं।

(iii) प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-I बैंक अपने ग्राहकों को जानिए और पर्याप्त कर्मिष्ठता का पालन करें तथा आयातक को ग्राहक की वित्तीय स्थिति/ हैसियत और पिछले कार्यनिष्पादन से पूरी तरह संतुष्ट होना चाहिए। यह सुविधा प्रदान करने से पहले वे विदेशी बैंकर अथवा विदेशी ख्याति प्राप्त साख एजेंसी से प्रत्येक विदेशी आपूर्तिकर्ता के संबंध में रिपोर्ट भी प्राप्त करें।

4. फरवरी 06, 2004 के ए.पी.(डीआइआर सिरीज़) परिपत्र सं.66 की सभी अन्य शर्तें यथावत रहेंगी।

5. प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी I बैंक इस परिपत्र की विषयवस्तु से अपने संबंधित घटकों और ग्राहकों को अवगत करा दें।

6. इस परिपत्र में समाहित निदेश विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम, 1999 (1999 का 42) की धारा 10(4) और धारा 11(1) के अंतर्गत जारी किए गए हैं और अन्य किसी कानून के अंतर्गत अपेक्षित अनुमति/अनुमोदन, यदि कोई हो, पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बगैर है।

 

भवदीय

(सलीम गंगाधरन)
मुख्य महाप्रबंधक

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