प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को ऋण पर मास्टर परिपत्र - शहरी सहकारी बैंक
आरबीआई/2012-13/57 02 जुलाई 2012 मुख्य कार्यपालक अधिकारी महोदया/ महोदय, प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को ऋण पर मास्टर परिपत्र - शहरी सहकारी बैंक कृपया उपर्युक्त विषय पर 1 जुलाई 2011 का हमारा मास्टर परिपत्र शबैंवि. बीपीडी (पीसीबी) एम सी सं. 7/ 09.09.001/ 2011-12 (भारतीय रिज़र्व बैंक की वेबसाइट www.rbi.org.in पर उपलब्ध) देखें। संलग्न मास्टर परिपत्र में 30 जून 2012 तक जारी सभी अनुदेशों/दिशा-निर्देशों को समेकित एवं अद्यतन किया गया है तथा परिशिष्ट में उल्लिखित है। भवदीय (ए उद्गाता) संलग्नक : यथोक्त प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को उधार पर मास्टर परिपत्र प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को ऋण पर मास्टर परिपत्र 1. प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार का संक्षिप्त परिचय 1.1 जुलाई 1968 में आयोजित राष्ट्रीय ऋण परिषद की बैठक में इस बात पर जोर दिया गया था कि वाणिज्य बैंक प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र, कृषि और लघु उद्योग क्षेत्र के वित्तपोषण हेतु ज्यादा प्रतिबद्धता दिखाएं। बाद में, प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को अग्रिम से सम्बन्धित आंकड़ों के बारे में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा मई 1971 में गठित अनौपचारिक अध्ययन दल की रिपोर्ट के आधार पर 1972 के दौरान प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के स्वरुप को औपचारिक अभिव्यक्तिप्रदान की गई । उक्त रिपोर्ट के आधार पर भारतीय रिज़र्व बैंक ने प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को अग्रिम की रिपोर्ट मंगवाने हेतु एक संशोधित विवरणी निर्धारित की और प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के विभिन्न वर्गों के अंतर्गत शामिल की जाने वाली योग्य मदों को इंगित करने के प्रयोजन से कतिपय दिशा-निर्देश भी जारी किये । हालांकि, प्रारम्भ में प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र उधारों के अंतर्गत कोई विशिष्ट लक्ष्य निर्धारित नहीं किये गए थे, नवम्बर 1974 में बैंकों को सूचित किया गया कि वे मार्च 1979 तक अपने सकल अग्रिमों में इन क्षेत्रों को देय अग्रिमों का प्रतिशत बढ़ाकर 33 1/3% कर दें । 1.2 शहरी सहकारी बैंकों के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा मई 1983 में गठित स्थायी परामर्शदात्री समिति ने प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक (शहरी सहकारी बैंक) द्वारा प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को ऋण उपलब्ध कराने की आवश्यकता की जांच की। समिति की सिफारिशों को भारतीय रिज़र्व बैंक ने स्वीकार किया तथा तदनुसार प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र और कमजोर वर्ग को शहरी सहकारी बैंकों द्वारा उधार के लिए लक्ष्य निर्धारित किए गए। 1.3 प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र का गठन करनेवाले खंडों, लक्ष्यों और उप-लक्ष्यों आदि सहित प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार पर मौजूदा नीति, तथा बैंकों, वित्तीय संस्थानों, जनता और भारतीय बैंक संघ से प्राप्त टिप्पणियों / सिफारिशों की जांच, समीक्षा और परिवर्तन की सिफारिश करने हेतु भारतीय रिज़र्व बैंक में गठित आंतरिक कार्यकारी दल (अध्यक्षः श्री सी.एस.मूर्ति) द्वारा सितंबर 2005 में की गई सिफारिशों के आधार पर यह निर्णय किया गया है कि केवल उन क्षेत्रों को प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के एक भाग के रूप में शामिल किया जाए जो जनसंख्या के एक बड़े हिस्से, कमज़ोर वर्गों तथा रोजगार प्रधान क्षेत्रों जैसे कृषि, अत्यंत लघु और लघु उद्यमों को प्रभावित करते हों।तदनुसार, शहरी सहकारी बैंकों के लिए मोटे तौर पर प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के निम्नलिखित वर्ग होंगे : 2. प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के वर्ग 2.1 कृषि (प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष वित्त) : कृषि को प्रत्यक्ष वित्त में कृषि और उससे संबद्ध कार्यकलापों (डेरी उद्योग, मत्स्यपालन, सुअर पालन, मुर्गी पालन, मधुमक्खी पालन आदि) के लिए बिना कोई सीमा के अल्पावधि, मध्यावधि और दीर्घावधि ऋण देना शामिल है ।प्रत्यक्ष वित्त की सुविधा केवल स्थायी सदस्यों तक सीमित रखी जाए तथा अस्थायी सदस्य या कंपनी जैसे प्राथमिक कृषि ऋण समितियां(पीएसीएस), प्राथमिक भूमि विकास बैंक आदि को न दिया जाए। कृषि को अप्रत्यक्ष वित्त में संलग्न पैरा 5 में उल्लिखित कृषि और उससे संबद्ध कार्यकलापों के लिए ऋण शामिल होंगे। कृषि क्षेत्र और संबद्ध गतिविधियों को प्रदान ऋण इस बात पर ध्यान दिए बिना कि वित्त निर्यात या घरेलु गतिविधियों के लिए है, प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को उधार के अंतर्गत वर्गीकृत करने के लिए पात्र है। कृषि क्षेत्र और संबद्ध गतिविधियों को प्रदान निर्यात ऋण "कृषि क्षेत्र के लिए निर्यात ऋण" शीर्ष के अंतर्गत विवरण II में अलग से सूचित करें । 2.2 लघु उद्यम (प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष वित्त) : लघु उद्यम को प्रत्यक्ष वित्त में सामान के विनिर्माण / उत्पादन, प्रसंस्करण या परिरक्षण में कार्यरत व्यष्टि और लघु (विनिर्माण) उद्यमों तथा सेवाएं प्रदान करने वाले व्यष्टि और लघु (सेवा) उद्यमों, जिनका क्रमशः संयंत्र और मशीनों तथा उपकरणों (भूमि और भवन तथा उसमें उल्लिखित ऐसी मदों को छोड़कर मूल लागत) में निवेश संलग्न भाग I में निर्धारित राशि से अधिक न हो, को प्रदान सभी प्रकार के ऋण शामिल हैं। व्यष्टि और लघु (सेवा) उद्यमों में संलग्न भाग I में दी गई परिभाषा के अनुसार लघु सड़क एवं जलपरिवहन परिचालक, लघु व्यवसाय, व्यावसायिक और स्वनियोजित व्यक्तियों तथा अन्य सभी सेवा उद्यम शामिल होंगे।लघु उद्यमों को अप्रत्यक्ष वित्त में इस क्षेत्र में कारीगरों, ग्राम एवं कुटीर उद्योगों, हथकरघा उद्योग तथा उत्पादनकर्ता की सहकारी संस्थाओं को निविष्टियां उपलब्ध कराने तथा उनके उत्पादनों की विपणन व्यवस्था करनेवाले किसी भी व्यक्ति को दिया गया वित्त शामिल होगा। माईक्रो और लघु उद्यमियों को (एमएसई) (विनिर्माण और सेवाए) प्रदान ऋण इस बात पर ध्यान दिए बिना कि वित्त निर्यात या घरेलु गतिविधियों के लिए है, प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को उधार के अंतर्गत वर्गीकृत करने के लिए पात्र है, बशर्ते ऐसे उद्योग एमएसएमईडी अधिनियम 2006 में निहित एमएसई क्षेत्र की परिभाषा के अनुरूप हो । एमएसई को दिया गया निर्यात ऋण "माइक्रो और लघु उद्योग क्षेत्र को निर्यात ऋण" के अंतर्गत विवरण II में अलग से सूचित करें । 2.3 व्यष्टि ऋण : प्रति उधारकर्ता 50,000 रुपए से अनधिक राशि या अग्रिमों पर अधिकतम गैरजमानती स्वीकार्य सीमा जो भी कम है,के ऋण और अन्य वित्तीय सेवाएं और उत्पाद उपलब्ध कराना शामिल होगा। 2.4 शैक्षिक ऋण : शैक्षिक ऋण में अलग-अलग व्यक्तियों को शिक्षा के प्रयोजनार्थ भारत में अध्ययन के लिए 10 लाख रुपए तक तथा विदेश में 20 लाख रुपए के स्वीकृत ऋण और अग्रिम शामिल होंगे , न कि संस्थाओं को दिए गए ऋण और अग्रिम। 2.5 आवासीय ऋणः व्यक्तियों को प्रति परिवार आवासीय इकाइयां खरीदने / निर्माण करने* (बैंकों द्वारा अपने कर्मचारियों को प्रदान ऋण को छोड़कर) हेतु ` 25 लाख तक के ऋण तथा क्षतिग्रस्त आवासीय इकाइयों की मरम्मत के लिए ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्र में ` 1 लाख तक तथा शहरी और महानगरीय क्षेत्रों में ` 2 लाख रुपए तक के ऋण शामिल होंगे। 2.6 स्वयं सहायता समूह (एसएचजी)/संयुक्त देयता समूह (जेएलजी) स्वयं सहायता समूह /संयुक्त देयता समूह को कृषि या उससे संबंधित गतिविधियां के लिए दिए गए ऋण को प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को अग्रिम समझा जाएगा । साथ ही स्वयं सहायता समूह /संयुक्त देयता समूह को ` 50,000/- तक दिए गए अन्य ऋण को माइक्रो क्रेडिट समझा जाएगा तथा वह प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को अग्रिम ही समझा जाएगा । स्वयं सहायता समूहों को उधार जो प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को ऋण के रूप में अर्हक है, कमजोर वर्ग को उधार के रूप में भी समझा जाएगा । * इस प्रयोजन के लिए परिवार का अर्थ जिसमें सदस्य के पति/पत्नी और बच्चे, सदस्य के मातापिता, भाई और बहन शामिल हैं जो सदस्य पर आश्रित हैं, परंतु कानुनी रूप से अलग हुए पति पत्नी शामिल है। 3.1 प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को ऋण देने के लिए निर्धारित लक्ष्य निवल बैंक ऋण (एबीसी)कुल ऋण और अग्रिम प्लस शहरी सहकारी बैंक द्वारा गैर एसएलआर बांडों में किया गया निवेश या तुलन पत्र से इतर एक्सपोज़र (ओबीइ) के बराबर ऋण की राशि, जो पिछले साल के 31 मार्च की स्थिति इनमें से जो भी अधिक हो, से सहबद्ध होगी। 31 अगस्त 2007 एचटीएम वर्ग में धारित गैर एसएलआर बांडों में बैंकों द्वारा किए गए मौजूदा निवेश को एबीसी की गणना के लिए हिसाब में नहीं लिया जाएगा। तथापि, गैर एसएलआर बांडों में बैंकों द्वारा किए गए नए निवेश को इस प्रयोजन के लिए हिसाब में लिया जाएगा। तुलनपत्र से इतर एक्सपोज़र के बराबर ऋण राशि की गणना करने के प्रयोजन के लिए बैंक वर्तमान एक्सपोजर प्रणाली का उपयोग करें। प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को ऋण देने के लक्ष्यों / उप-लक्ष्यों के प्रयोजन के लिए आंतर-बैंक एक्सपोज़र को हिसाब में नहीं लिया जाएगा। 3.2 शहरी सहकारी बैंकों के लिए प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत ऋण देने के लिए निर्धारित लक्ष्य / उप-लक्ष्य नीचे दिए गए हैं:
3.3वेतन भोगी बैंक : प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार की शर्तें वेतन भोगी बैंको पर लागू नहीं हैं। 3.4 अल्प संख्यक समूदाय को ऋण : प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों को प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत कारीगरों और हस्त शिल्पियों के साथ-साथ अल्प संख्यक समुदाय के सब्जी बेचनेवालों, बैलगाडी चलानेवालों, चर्मकारों आदि को ऋण की आपूर्ति को बढ़ाने के लिए आवश्यक उपाय करने चाहिए । इस संबंध में अल्प संख्यक समुदाय में सिख, मुस्लिम, ख्रिश्चियन, जोरोस्ट्रीयन और बुद्धिस्ट शामिल हैं ।प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को उधार के समग्र लक्ष्य तथा कमजोर वर्ग को 25 % के उप-लक्ष्य के भीतर ऋण का न्यायोचित भाग अल्प संख्यक समूदाय को भी मिल रहा है यह सुनिश्चिंति करने के लिए उचित सावधानी बरते। 4. प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र के अंतर्गत प्रदान अग्रिमों की देखरेख और उनका मूल्यांकन 4.1 प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों को सिफारिश किए गए उक्त लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कारगर उपाय करने चाहिए और प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र ऋण की मात्रा और गुणवत्ता की दृष्टि से निगरानी करनी चाहिए। 4.2 प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को ऋण देने पर यथोचित ध्यान देना सुनिश्चित करने के लिए यह वांच्छनीय है कि कार्यनिष्पादन की आवधिक जांच की जाए । इस प्रयोजन के लिए सामान्य पुनरीक्षा के अलावा जैसे कि बैंक आवधिक आधार पर कर रहें हैं, बैंकों के निदेशक मंडल द्वारा छमाही आधार पर विशिष्ट समीक्षा की जानी चाहिए । तद्नुसार, बैंक उक्त अवधि के दौरान पिछली तिमाही की तुलना में घट-बढ़ दर्शाते हुए बैंक के कार्यनिष्पादन का विस्तृत लेखाजोखा अर्धवार्षिक आधार पर प्रत्येक वर्ष के 30 सितंबर और 31 मार्च को, (विवरण I) निदेशक मंडल को प्रस्तुत करें । 4.3 साथ ही 31 मार्च की स्थिति के अनुसार प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को उधार के कार्यनिष्पादन की वार्षिक समीक्षा निदेशक मंडल के समक्ष (विवरण II भाग अ) अगले वित्तीय वर्ष की 15 तारीख तक प्रस्तुत करें। 31 मार्च की स्थिति के अनुसार प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को उधार के कार्यनिष्पादन की वार्षिक समीक्षा भी निदेशक मंडल के प्रेक्षणों के साथ बैंक के कार्यनिष्पादन में सुधार लाने के लिए किए गए प्रस्ताव/उपायों का उल्लेख करके 31 मार्च की स्थिति के अनुसार वार्षिक समीक्षा की एक प्रति (विवरण II भाग अ से उ)भारतीय रिज़र्व बैंक के संबंधित क्षेत्रीय कार्यालय को भेजी जाए। रिपोर्ट संबंधित अवधि की समाप्ति से 15 दिनों के अंदर क्षेत्रीय कार्यालय को पहुंच जानी चाहिए । 4.4 बैंकों को 31 मार्च की स्थिति के अनुसार कृषि एवं संबंधित कार्यकलापों को दिए गए प्रत्यक्ष वित्त और अग्रिम दर्शानेवाली स्थिति 15 दिनों के अदर विवरण III (भाग अ तथा आ) में उनके क्षेत्र से संबंधित भारतीय रिज़र्व बैंक के क्षेत्रीय कार्यालय को प्रस्तुत करना चाहिए। 4.5 रिपोर्टिंग फार्मेट उनकी आवधिकता के साथ नीचे संक्षिप्त रूप में दिए गए है:
4.6 संबंधित आंकड़ो के समेकन को सुगम बनाने के लिए बैंक प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र की मदों के उल्लेख के लिए एक रजिस्टर रखें तथा दूसरे रजिस्टर में प्रत्येक कार्यकलाप के लिए एक अलग संविभाग बना कर कमजोर वर्ग के अंतर्गत दिए कुल अग्रिमों का ब्योरा दर्ज करें ताकि प्रत्येक कार्यकलाप के अंतर्गत प्रत्येक लाभार्थी को प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र और कमजोरवर्ग के अंतर्गत दिए गए कुल अग्रिमों की जानकारी किसी भी समय आसानी से उपलब्ध हो सके । इन रजिस्टरों का प्रोफार्मा भारतीय रिज़र्व बैंक को प्रस्तुत की जानेवाली वार्षिक विवरणी के अनुसार होना चाहिए । 5. इस संबंध में विस्तृत दिशा-निर्देश नीचे दिए गए हैं।
टिप्पणी : यद्यपि, शहरी सहकारी बैंको के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष कृषि उधार के लिए कोई निश्चित लक्ष्य निर्धारित नहीं किए गए हैं, यहां दिए गए वर्गीकरण का ऋण प्रवाह की निगरानी तथा रिपोर्टिंग हेतु प्रयोग किया जाए। अल्पसंख्यक सघन जिलों की राज्यवार सूची
मास्टर परिपत्र में समेकित परिपत्रों की सूची
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