माल और सेवाओं का निर्यात
21 फरवरी 2012 माल और सेवाओं का निर्यात ए. सॉफ्टेक्स क्रियाविधि का सरलीकरण और संशोधन हाल ही की कालावधि में, भारत से सॉफ्टवेयर निर्यातों की मात्रा में हुई वृद्धि, उसमें निहित कार्य-संविदा की जटिलता, सॉफ्टेक्स फॉर्मों के प्रमाणीकरण की प्रक्रिया में लगने वाले काफी समय को ध्यान में रखते हुए, रिज़र्व बैंक ने एक सरल प्रक्रिया को अंतिम रूप दिया है। संशोधित प्रक्रिया के अनुसार, सॉफ्टवेयर निर्यातक, जिसका वार्षिक पण्यावर्त न्यूनतम रु.1000 करोड़ है अथवा जो वर्ष में 600 सॉफ्टेक्स फॉर्म फाइल करता है, सॉफ्टेक्स फॉर्मों के चार प्रतियों वाले सेट सहित सभी ब्योरे देते हुए एक्सेल फॉर्मेट में एक विवरण भारतीय सॉफ्टवेयर प्रौद्योगिकी पार्क (STPI) को प्रस्तुत करने के लिए पात्र होगा। तदनंतर भारतीय सॉफ्टवेयर प्रौद्योगिकी पार्क (STPI) ब्योरों का सत्यापन करेगा और दस्तावेजों की विस्तृत नमूना जाँच का प्रतिशत निर्धारित करेगा (सॉफ्टवेयर कंपनियां मांग निर्धारित/ बढ़ाये गये समय के भीतर उन्हें प्रस्तुत करेंगी)। भारतीय सॉफ्टवेयर प्रौद्योगिकी पार्क (STPI) विवरण और मूल्य, आदि से संबंधित सॉफ्टेक्स फॉर्मों को थोक में टॉप शीट पर प्रमाणित करेंगे तथा तदनंतर सॉफ्टेक्स फॉर्मेट की विभिन्न प्रतियां संबंधित एजेंसियों को मूल्य/रिकार्ड के लिए प्रस्तुत करेगी। संशोधित क्रियाविधि के तहत, निर्यातक 25000 अमरीकी डॉलर से कम के बीजकों सहित सभी बीजकों संबंधी जानकारी प्रस्तुत करेंगे। प्रारंभ में नयी क्रियाविधि भारतीय सॉफ्टवेयर प्रौद्योगिकी पार्क (STPI) बेंगलूर, हैदराबाद, चेन्नई, पुणे और मुंबई में 01 अप्रैल 2012 से लागू होगी। इन केंद्रों में पायी गयी सफलता के आधार पर, यह क्रियाविधि सभी भारतीय सॉफ्टवेयर प्रौद्योगिकी पार्कस् (STPIs) तथा विशेष आर्थिक क्षेत्रों(SEZs)/ निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्रों (EPZs)/100& निर्यात अभिमुख ईकाई (EOU)/ईलेक्ट्रॉनिक हार्डवेयर प्रौद्योगिकी पार्क (EHTP)/देशी प्रशुल्क क्षेत्र (DTA) ईकाईयों द्वारा अपनायी जाएगी। (कृपया 15 फरवरी 2012 का ए.पी.(डीआइआर श्रृंखला) परिपत्र सं.80 देखें)। बी. माल और सेवाओं का निर्यात – एक वर्ष से ऊपर (विनिर्माण एवं पोत लदान) वाले उक्त क्रियाविधि को उदार बनाने की दृष्टि से, अब यह निर्णय लिया गया है कि प्राधिकृत व्यापारी श्रेणी-। बैंकों को, कतिपय शर्तों के अधीन निर्यातकों को ऐसे माल के निर्यात के लिए अग्रिम भुगतान प्राप्त करने हेतु मंजूरी देने की अनुमति दी जाए, जिनके विनिर्माण तथा लदान में एक वर्ष से अधिक का समय लगेगा और जहाँ 'निर्यात करार' में यह प्रावधान है कि अग्रिम भुगतान की प्राप्ति की तारीख से एक वर्ष की अवधि से ऊपर माल के पोत लदान किये जा सकते हैं:- (कृपया 21 फरवरी 2012 का ए.पी.(डीआइआर श्रृंखला) परिपत्र सं.81 देखें)। सी. आयात के लिए विदेशी मुद्रा जारी करना – और अधिक उदारीकरण वर्तमान में भारत में आयात के लिए व्यक्तियों, फर्मों तथा कंपनियों द्वारा 500 अमरीकी डॉलर से अधिक अथवा उसकी समतुल्य राशि के भुगतान करने के लिए फॉर्म ए-1 में आवेदन किया जाना चाहिए। अब यह निर्णय लिया गया है कि उदारीकरण के उपाय के रूप में अब आयातों के संबंध में किसी प्रलेखन औपचारिकताओं के बगैर, विदेशी मुद्रा विप्रेषण के लिए उपर्युक्त सीमा, तत्काल प्रभाव से 5000 अमरीकी डॉलर अथवा उसकी समतुल्य राशि की जाए। यह स्पष्ट किया जाता है कि जब विदेशी मुद्रा की खरीद, समय समय पर यथा संशोधित, 3 मई 2000 की अधिसूचना सं. जी.एस.आर.381 (ई) के जरिये भारत सरकार द्वारा बनायी गयी विदेशी मुद्रा प्रबंध (चालू खाता लेनदेन) नियमावली, 2000 की अनुसूची। और ॥ में शामिल न किए गए, चालू खाता लेनदेन के लिए की जा रही हो, जिसकी राशि 5000 अमरीकी डॉलर अथवा उसकी समतुल्य राशि से अधिक न हो और भुगतान आवेदक के बैंक खाते पर आहरित चेक द्वारा अथवा माँग ड्राफ्ट द्वारा किया जा रहा हो, तो प्राधिकृत व्यापारी ऐसे आवेदक से फॉर्म ए-1 सहित कोई भी अतिरिक्त दस्तावेज न लें बल्कि एक साधारण आवेदन पत्र लें जिसमें मूल जानकारी अर्थात् आवेदक का नाम और पता, लाभार्थी का नाम और पता, विप्रेषित की जाने वाली राशि और विप्रेषण का प्रयोजन निहित हो। (कृपया 21 फरवरी 2012 का ए.पी.(डीआइआर श्रृंखला) परिपत्र सं.82 देखें)। अजीत प्रसाद प्रेस प्रकाशनी : 2011-2012/1342 |
पृष्ठ अंतिम बार अपडेट किया गया: